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________________ सम्प्रति राजा. ( १७१ ) प्रहरण की थी जिसका विस्तृत वर्णन पहिले लिखा जा चुका है जब यह भिक्षुक जैनमुनि हो गया और रात्रि में अतिसार के रोगसे मर कर राजा कुनालके घर उत्पन्न हुआ यही सम्प्रति उज्जैन नगरी का राजा हुआ । उस समय आचार्य श्री सुहस्तीसूरी उज्जैन में भगवान महावीर स्वामी की रथयात्रा के महोत्सव पर आए थे । रथयात्रा की सवारी नगर के आम रास्तोंपर घूमधाम के निकल रही थी । आचार्य श्री के शिष्य भी इसी सवारी के 1 साथ चल रहे थे । पहुँचते पहुँचते सवारी राजमहलों के निकट पहुँची । झरोखे में बैठा हुआ सम्प्रति राजा टकटकी लगाकर आचार्यश्री की ओर निहारने लगा | न मालूम किस कारण से राजाका चित्त आचार्यश्री की ओर अधिक आकर्षित होने लगा । राजाने इस समस्या को हल करना चाहा । सोचते सोचते सहसा राजा को जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ । राजा को पिछले भव की सब बातें याद आई । राजाने सोचा एक दिन वह भी था कि मैं भिसुक होकर दाने दाने के लिये घर घर भटकता था। केवल पेट भरने के लिये ही मैंने इन आचार्यश्री के पास दीक्षा ली थी उस दीक्षा के ग्रहण करनेसे एक ही रात्रि में मेरा कल्याण हो गया । इसी दीक्षा के प्रज्जवल प्रतापसे मैं इस कुल में राजा के घर उत्पन्न होकर भाज राजऋद्धि भोग रहा हूँ। आज मैं सहस्रों दासों का स्वामी हूँ । यह सब आचार्य श्री ही का प्रताप है। इनकी कृपा बिना इतनी वि V
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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