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( १७०) जेन जाति महोदय प्रहरण पांचवा. सौतेली माने षट् यंत्र के प्रयोगसे उसे अन्धा कर दिया पर कृपालु अशोकने इतना होनेपर भी उसे उज्जैन में ही रक्खा । इधर पाटलीपुत्र में अशोक के पीछे उसका पुत्र वृहद्रथ सिंहासनारूढ़ हुमा । बह राजा निर्षल था अतएव मौर्यवंश का प्रताप फीका पड़ने लगा । राजा को निस्तेज देखकर उसके कपटी मंत्रीने साहस कर एक दिन वृहद्रथ को जानसे मारडासा ।
राजा वृहद्रथ की हत्या करनेवाला पुष्पमंत्री वृहस्पति के उपनाम से मगध देश की राजगद्दी पर अधिकार कर बैठा । वृहस्पति बहादुर एवं कार्य कुशल व्यक्ति था। यह ब्राह्मण धर्मी था अतएव उस मरते हुए ब्राह्मण धर्म में फिरसे जान डाली। इसने चाहा कि अश्वमेध यज्ञ कर चक्रवर्ती की उपाधि उपार्जन करूँ पर महामेघ वहान चक्रवर्ती महाराजा खारवेलने मगध देश पर आक्रमण कर बृहस्पति के मदको मर्दन कर उसे इस प्रकारसे पराजित किया कि उसके पाससे सारा धन, जो वह कलिङ्ग देशमें उकैती करके लाया था. तथा पूर्व नंदराजा स्वर्णमय जिन मूर्ति जो कुमार गिरि तीर्थ से उठा लाया था, ले लिया । खारवेलने पूग बदला ले लिया। खारवेल ने मगधसे वह धन और मूर्ति फिर जहाँ की तहाँ कलिङ्ग देशमें पहुँचा दी । अब मगध देश भी कलिङ्गदेश के अधिकार में भागया । ____ उधर उज्जैन नगरी में महाराजा कुनाल का पुत्र सम्पति राज्य करने लगा । यह सम्प्रति राना पूर्व भवमें एक भिक्षुक का जीव था । इस मिटुकने भाचार्य श्री सुहस्तीसूरी के पास दीक्षा