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जेन जाति महोदय प्रकरण पांचवा.
और भाशाओं में भगवान् पार्श्वनाथ स्वामी की स्तुतियों पाई जाती हैं। डा० लार्ड कनिङ्ग होमने अपनी पुस्तकों में इस बात का उल्लेख किया है कि राजा अशोक पहले तो जैनी था पर बाद में उसने बौद्ध धर्म कब स्वीकार किया इस विषय में विद्वानों का यह मत है कि ई. स. २६२ पूर्व में अशोकने कलिङ्ग देश पर चढ़ाई की। उस युद्ध में कलिङ्ग के कई योद्धा जान से हाथ धो बैठे । यह देख कर अशोक का हृदय दया से द्रविभूत हो कर तिलमिला उठा । युद्ध की पापमयी रक्त रंजित लीला को देख कर सहसा उस का विचार परिवर्तित हो गया । कलिङ्ग देश को जीत कर जब वह मगध देश में आया तो उसने मात्म प्रेरणा से यह दृढ़ निश्चय कर लिया कि जीवन पर्यन्त कभी भी में युद्ध नहीं करूंगा ।
जिस समय अशोक यह प्रतिज्ञा कर रहा था एक बौद्ध भिक्षु भी राजा के पास पहुँच गया और राजा की ऐसी दशा देख कर उसने अहिंसा का महत्व बता उसे अपने पंथ में मूँड लिया । वह बौद्ध भिक्षु तो नहीं बना पर अहिंसा के प्रेम में ऐसा रंगा हुआ था कि उसने चट बौद्ध धर्म को स्वीकार कर लिया । जैनों की अनुपस्थिति में यदि उसने इस मत को ग्रहण कर लिया हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं थी । राजा अशोक भोजस्वी एवं पूर्ण मनस्वी था । उसने बौद्ध धर्म का किया । देश की गली गली में बौद्ध धर्म का डंका बजने लगा 1 तथा झुण्ड के मुड जा कर बौद्ध धर्म की शरण ताकने लगे ।
प्रचार खूब जोरों से
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