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अशोक.
(११ ) बेदान्तियाँ का जोर मिटता जा रहा था । उन के दिन घर नहीं थे । जो राजा का धर्म होता है वही प्रजा का होता है वह एक साधारण बात है । इसी नियमानुसार जैन धर्म का क्षेत्र बहुत विस्तृत हो गया था । बिन्दुसार राजा शांति प्रिय एवं संतोषी था । इस का राज्य काल निर्विवतया बीत रहा था । इस के शासन के समय ऐसी कोई भी महत्व की घटना नहीं घटित हुई जिस का कि इस जगह विशेष उल्लेख किया जाय |
राजा अपनी प्रजा को पुत्र तुल्य समझता था तथा प्रजा भी अपने राजा की पूर्ण भक्त थी । जैन धर्म का एक उद्देश्य शांति भी है जिस का कि साम्राज्य बिन्दुसार के समय में था । इसने कई यात्राऐं की । कुमारी कुमार तीर्थ पर तो यह राजा निवृत भाव मे कई बार संलग्न रहता था । लोकोपकारी कार्यों में राजा की अधिक रुचि थी प्रजा के सुभीते के लिये जगह जगह कुए, तालाब और बगीचे बनाने में इसने विपुल सम्पचि व्यय की । अनेक विद्यालय एवं जिनालय इस के हाथ से प्रतिष्ठित हुए । कषि, व्यापार और शिल्प की उन्नति के लिये ही बिन्दुसारने विशेष प्रयत्न किया था । इस प्रकार इसने अपना जीवन परम सुख से व्यतीत किया ।
महाराजा बिन्दुसार के पश्चात् मगध देश का राज्य मुकुट अशोक के सर पर शोभित हुमा । अशोक भी अपने पिता व पितामह की तरह शूरवीर एवं प्रतापी योद्धा था । यह राजा भी - जैनी ही था । महाराजा अशोक की तपशिखा की प्रशस्तियों