SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 757
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१६६ ) जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा. माना है और उन के इस कथन को प्रसत्य समझने के लिये कोई उपयुक्त कारण नहीं हैं । यह बात भी सर्वथा सत्य है कि शैशुनाग, नंद और मौर्य वंश के गजाओं के समय मगध देश में जैन धर्म का प्रचार प्रचुरता से था । चन्द्रगुप्तने यह राजगद्दी एक चतुर ब्राह्मण की सहायता से प्राप्त की थी। यह बात इस बात में बाधक नहीं होती कि चन्द्रगुप्त जैनी था । मुद्रा राक्षस नामक नाटक में एक जैन साधु का भी उल्लेख है । यह साधु नंद वंशीय एवम् पीछे से मौर्य वंशीय राजामों के गक्षस मंत्री का खास मित्र था ।" ___Mr. H. L O, Garrett M. A; I. E. S. in his essey " Chandragupta Maurya ” says- Chandragupta, who was said to have been a Jain by religion, went on a pilgrimage to the South of India at the time of a great famine. There he is said to have starved himself to death. At any rate he ceased to reign about 298 B. "C. इत्यादि बातों से यही सिद्ध होता है कि सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य एक जैनी राजा था । उसने अपने राज्य को त्याग कर जैन दीक्षा ली थी । दीक्षा लेकर उसने समाधि मरण प्राप्त किया था । और न्याँ न्याँ ऐतिहासिक खोज होती रहेंगी त्या त्या प्रमाण भी विस्तृत संख्या में हस्तगत होते रहेंगे। चन्द्रगुप्त के राज्य का उत्तराधिकारी उनका पुत्र बिन्दुसार हुचा । यह भी बड़ा पराक्रमी और नीतिज्ञ राजा था। यह जैन धर्म का उपासक एवम् प्रचारक भी था। इस के शासन काल में भी जैन धर्म उत्थान के उप शिविर पर था । बौद्ध और
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy