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________________ ( १५८ ) जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा. अभयकुमारने अनार्य देशके आर्द्रकपुर नगर के महाराज कुमार भाई के लिये भगवान् ऋषभदेव की मूर्ती भेजी थी। इस मूर्ती के दर्शन से आर्द्रकुमारने ज्ञान प्राप्त कर जैनधर्म की दीक्षा ले अनार्य देश में भी जैनधर्म का खूब प्रचार किया था । राजा श्रेणिक नित्य प्रति १०८ सोने के जो ( अक्षत ) बना कर प्रभु के आगे स्वस्तिक बना चौगति की फेरी से बचने की उज्जवल भावना किया करता था । यह नृपति जैनधर्म का प्रसिद्ध प्रचारक हुआ है । श्रेणिक नरेशने कलिङ्ग देश के अन्तर्गत कुमार एवं कुमारी पर्वत पर भगवान ऋषभदेव स्वामी का विशाल रम्य मन्दिर बनवा उस में स्वर्ण मूर्ती की प्रतिष्ठा करवाई थी । इस के अतिरिक्त उसने उसी पर्वत पर जैन श्रमणोंके हित बड़ी बड़ी गुफाओं का निर्माण भी कराया था । इसी अपूर्व और अलौकिक भक्ति की उच्च भावना के कारण आगामी चौबीसी में श्रेणिक नृपति का जीव पद्मनाभ नामक प्रथम तिर्थकर होगा । करते समय दीक्षा नहीं महाराजा श्रेणिक बौद्ध अवस्था में शिकार अधोगति का बांध चुके थे अतः वे स्वयं तो ले सके किन्तु जो कोई दूसरा दीक्षा लेना चाहता था तो उसे वे रोकते नहीं थे वरन उसे सहयोग दे कर उसका उत्साह द्विगुणित करने में कभी नहीं चूकते थे । इस सुविधा को देख कर राजा श्रेणिक के पुत्र तथा प्रपुत्र जालीकुमार, मयाली, उदयाली, पुरुषसेन, महासेन, मेघकुमार, हल, विहल और नंदीसेन आदिने एबम् नन्दा, महान्दा और सुनन्दा आदि रानियोंने भगवान् महा
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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