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श्रेणिक नरेल. कार्य उस के सुपुर्द कर दिया। प्रभजित नरेश नमस्कार मंत्र का माराधन करता हुमा देह त्याग स्वर्ग की भोर सिधारा ।।
श्रेणिक राजाने राजगद्दी पर बैड़ते ही बोद्ध भिक्षुकों को बुलाया तथा बौद्धधर्म स्वीकार कर उस के प्रचार का कार्य भी करने लगा। बौद्ध ग्रंथों में श्रेणिक का नाम बिम्बसार लिखा हुभा पाया जाता है । जैन ग्रंथों में भी श्रेणिक का दूसरा नाम बिम्बसार लिखा हुआ मिलता है । श्रेणिक राजा. के कई रानियाँ थीं उन में से एक का नाम चेलना था। चेलना विशाला नरेश चेटक की पुत्री थी तथा जैनधर्म की परमोपासिका थी। राजा तो बौद्ध था तथा रानी जैन थी अतएव सदा धर्म विषयक वाद विवाद चलता रहता था । धर्म की अन्धश्रद्धा के वशीभूत हुए श्रेणिकने जैनधर्म के प्रचारक मुनियों पर कई दोषारोपण भी किये । वह सदा मुनियों के प्राचार पर आक्षेप भी किया करता था पर रानी चेलना भी किसी प्रकार कम नहीं थी। उसने बौद्ध भिक्षुकों को लम्बे हाथ लिया। पर अन्त में अनाथी मुनि के प्रतिबोध से श्रेणिक राजा की अभिरुचि जैनधर्म की ओर हुई । महावीर भगवानने इस अभिरुचि को परम श्रद्धा के रूप में पुष्ट कर दिया । कई देवता आ कर श्रेणिक के दर्शन को डिगाने लगे पर उन का प्रयत्न विफल हुआ।
फिर क्या देरी थी ? राजा श्रेणिकने अपने राज्य में ही नहीं पर भारत के बाहर अनार्य देशों में भी जैनधर्म का प्रचार करना प्रारम्भ किया। महाराजा श्रेणिक के नंदा रानी के पुत्र