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जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा.
न मालूम शेष पुत्रों में से कौन राज्य की लालसा से उपद्रव करें बैठे । इसी हेतु एक बार बगीचे में श्रेणिक का ऐसा अपमान किया गया कि श्रेणिककुमार देश छोड़ कर भाग गया। जब श्रेणिक देश से भग कर जा रहा था तो रास्ते में उसे बौद्ध भिक्षुओं से भेंट हुई श्रेणिक रात्रिके समय बौद्धों के मठ में ही ठहरा तथा उसने आपबीती सब को कह सुनाई ।
बौद्धोंने श्रेणिक को कहा कि यदि तुम्हें राज्य प्राप्त करने की कक्षा है तो भगवान् बौद्ध पर विश्वास रक्खो । बोद्धधर्म पर श्रद्धा रखने से तुम्हें अवश्य राज्य प्राप्त होगा पर उस दशा में तुम बोद्ध धर्म का प्रचार करोगे तथा इस धर्म को स्वयं भी स्वीकार कर लोगे, ऐसी प्रतिज्ञा इस समय करो । श्रेणिकने यह बात स्वीकार करली | प्रातःकाल होते ही श्रेणिक वहाँ से चल पड़ा । चलते चलते वह बेनातट नगर में पहुँचा । वहाँ धनवहा सेठ की कन्या नन्दा से उस का विवाह हो गया । विवाह होने पर वह उसी नगर में रहने लगा । उधर प्रश्नजित राजा सख्त बीमार हुआ। वह मृत्युशय्या पर पड़ा पड़ा अपने पुत्र श्रेणिक की प्रतीक्षा कर रहा था । देवानन्द नामक सवार्थवाह ने आकर समाचार दिया कि श्रेणिक बेनावट नगर में रहता है । पिताने अपने अनुचरों को भेज कर श्रेणिक को बुलाया । नन्दा गर्भवती थी | पर श्रेणिकने अपने पिता की आज्ञा को टालना उचित नहीं समझा । श्रेणिक बड़ी सेना को ले कर राजगृह पहुचा । प्रश्ननित सब के समक्ष श्रेणिक को राज्याभिषेक कर राजगृह ( मगध )