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कोणिक नरेश.
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वीर
प्रभु के पास दीक्षा ली। इस प्रकार जैनधर्म का उत्थान श्रेणिक के शासनकाल में भी खूब हुआ ।
महाराजा श्रेणिक के बाद मगध का राज्यमुकुट श्रेणिक से उतर कर उस के पुत्र कौणिक के सिरपर चमकने लगा । वह बड़ा ही वीर था | कौणिक राजाने अपनी राजधानी चम्पा नगरी में कायम की । बौद्ध ग्रंथों में कौणिक नरेश अजातशत्रु के नाम से प्रसिद्ध है । कहीं कहीं बौद्ध ग्रंथों में इस का नाम बौद्धधर्मी राजाओं की परिगणना में आता है । कदाचित् कौणिक पहिले थोड़े समय के लिये बौद्धधर्मी रहा हो पर यह सर्वथा सिद्ध है कि पीछे से वह अवश्य जैनी हो गया था । उसने जैनधर्म की खूबं उन्नति भी की । कौणिक नरेशने पूर्ण प्रयत्न कर के अनार्य देशों तक में जैनधर्म का प्रचार कराया था । महाराजा कौणिक का यह प्ररण था कि जबलाँ मुझे यह संवाद नहीं मिले कि महावीर स्वामी कहाँ विहार कर रहे हैं मैं भोजन नहीं करूंगा । महाराजा कौणिक बड़े शूरवीर एवं प्रबल साहसी थे । हार हस्ती के लिये वीर कौणिक नरेशने महाराजा चेटक से बारह वर्ष पर्यन्त युद्ध कर अन्त में उसे पराजित कर विजय का डंका बजाया था । इतना ही नहीं पर उसने सारे भारत को अपने अधीन कर सम्राट की उपाधि प्राप्त की थी। जैन ग्रंथों में कौणिक नरेश का इतिहास बहुत विस्तार पूर्वक लिखा हुआ है ।
महाराजा कौणिक के पीछे मगधराज्य की गद्दीपर उसका पुत्र उदाई सिंहासनारूढ़ हुआ । इसने अपनी राजधानी पाटली