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(१५४) जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा.
लाखों नहीं वरन् क्रोडों की संख्या जैनोपासक दृष्टिगोचर होने लगे । वेदान्तियाँ का समुदाय लुप्तसा हो गया। जैनधर्म के प्रतापरुपी सूर्य के आगे बोद्धों का समुदाय उडुगण की तरह फीका नजर आने लगा । थोड़े ही समयमें सारा भारत जैनधर्म की पताका के नीचे आ गया । विशाला का चेटक नरेश, राजगृही का श्रेणिक भूप, कौणिक भूपति, नौलच्छिक, नौमलिक, अठारगण राजा, सिन्धु सौवीर का महाराजा उदाई, उज्जेन का नृपति चण्डप्रद्योतन, दर्शनपुर नरेश दर्शनामद्र, पावापुरी का नरपति हस्तपालराज, पोलासपुर का नरेन्द्र विजयसेन, काशी का . धर्मशील सावीक अदितशत्रु, सांकेतपुर का धर्मधुरन्धर धराधीश धर्मशाल, क्षत्रिकुण्ड का महाराजा नंदीवर्धन, कौसुम्बीपति उदाई, कपिलपुर का भूपति यमकेतु, श्वेताम्बर का नरेश प्रदेशी और कलिंग का अधियति महाराज सुलोचन ये सब जैनधर्म के प्रचारमें पूर्णतया संलग्न थे।
आदि तीर्थकर भगवान ऋषभदेव से लगा कर अंतिम तिर्थकर महावीर प्रभु के शासनकाल तक चक्रवर्ती, वासूदेव प्रतिवासुदेव, बलदेव, मण्डलिक, महामण्डलिक आदि सब सदाशय एवं महापुरुष परम श्रद्धालु जैनधर्मावलम्बी थे। इन का ऐतिहासिक वर्णन यदि किसी को मालूम करना हो तो चाहिये कि कलिकाल सर्वज्ञ भगवान हेमचन्द्राचार्य महाराज विरचित "त्रिषष्टि शलाका पुरुषचरित्र" नामक बृहग्रन्थ को देखो । प्राचीन इतिहास सिवाय जैन ग्रंथो के और कहीं भी नहीं पाया जाता ।