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भगवान् महावीर.
( १५३ ) साम्राज्य स्थापित कर धार्मिक क्षेत्रमें मची हुई क्रांति को मिटा दे । उस समय की दशा भी विचिप्त थी । पारस्परिक प्रतिद्वंदता का जमाना द्वेष को फैला रहा था। एक ओर वेदान्ति लोग यश आदिमें पशुहत्या पर तुले हुए थे तो दूसरी ओर बुद्धलोग हिंसा धर्म का उपदेश देते हुए भी मांसमदिरा के प्रयोगसे बचे हुए नहीं थे । तीसरी ओर जैनमुनि श्रहिंसा का उपदेश तो करते थे पर 1 उनके गृहक्लेश और शिथिलता के कारण उपदेश का पूरा प्रभाव नहीं पड़ता था । केशी श्रमणाचार्यने जैन मुनियों को समझा बुझा कर तत्कालीन समय की दशा का विस्तृत वर्णन किया तथा उन्हें सचेत कर जैनधर्म का उत्थान करने के लिये उत्साहित किया ।
ठीक आवश्यक्ता के समय भगवान् महावीर स्वामी का शासन प्रारम्भ हुआ। फिर किस वात की कमी थी। जगदुपकारक भगवान् महावीरने अपनी बुलन्द आवाजसे तथा दिव्य शक्तिद्वारा चारों ओर शान्ति फैलाई । आपने बाल्यावस्था से ही तत्वज्ञान से पूर्ण परिचय प्राप्त कर लिया था । श्राप का भात्मकल्याण करना था । अहिंसाघर्म का प्रचार आपका पवित्र उद्देश्य था । सब जीवों के प्रति प्रेम रखना यही आपके उपदेश का सार था। बस इसी मंत्र का सारे विश्व पर प्रभाव पड़ा । जाति के बन्धनों को तोड़ कर आपने उस और नीच का झगड़ा मिटा दिया । आत्मकल्याण की उज्जवल भावनासे प्रेरित हो १४००० मुनि एवम् ३६००० आर्याओंने आप के चरणों की शरण ली थी ।
मुख्य ध्येय करना ही
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