SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 743
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१५२) जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा. ___पार्श्वनाथ स्वामी के निर्वाण के पश्चात् फिर ब्राह्मणों का थोड़ा थोड़ा मायाजाल फैलने लगा। पर बदा कुछ और ही था। . पार्श्वनाथ स्वामी की परम्परा के साधु पेटतर्षि के शिष्य बुद्धकीर्तिने अपने नाम पर एक नया मत चलाया । इस मत का नाम उसने अपने नाम पर बुद्धधर्म रक्खा । उधर ब्राह्मणोंने हिंसामय यज्ञ आदि जोर शोरसे प्रारम्भ किये थे अतएव इस बुद्धकीर्तिने अहिंसा का उपदेश दे लोगों को अपने मतमें एकत्रित करना प्रारम्भ किया । उसने इतना प्रयत्न किया कि अनेक जैन राजा भी बोद्धधर्म के अनुयायी हो गये । इस बोद्धों की उन्नति के समयमें बाल ब्रह्मचारी मुनि आचार्यश्री केशी श्रमणने बुलन्द आवाजसे बोद्धधर्म का सतर्क खण्डन किया। केशी श्रमणाचार्यने बोद्धधर्म अवलम्बन करनेवाले राजाओं को प्रतिबोध दे पुनः जैनी बनाया । इस तरहसे प्रतिबोधित नृपतिगण ये थे:-चेटक, प्रसाजित, सिद्धार्थ, उदाई, सन्तानीक, चन्द्रपाल और प्रदेशी आदि । इनके अतिरिक्त और छोटे छोटे नरेश भी जैनी हुए जिन की संख्या मी बहुत थी। केशी श्रमणाचार्यने अपने प्राज्ञावर्ती मुनियों को देश परदेशमें भेज भेज कर बोद्धों के चंगुलसे अनेक प्राणियाँ को बचा कर जैनधर्मी बनाया। शिष्यों को अन्योन्य प्रान्तमें भेज कर आपने स्वयं अंग, बंग और मगध देशमें रह कर जैनधर्म की उन्नति करने में भटूट परिश्रम किया । तथापि प्रकृति एक महापुरुष की और कभी अनुभव करती थी। प्रतीक्षा एक ऐसे व्यक्ति की थी जो शांति का
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy