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पाश्वनाथस्वामि.
(१५१) मंत्र सुनाकर धरणीन्द्र की पदवी देनेवाले भाप ही थे। पार्थनाथ स्वामी ने दीक्षा लेकर कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया था। आपका धर्मचक्र विश्वव्यापी बन गया था।
बड़े बड़े राजा और महाराजा आपके चरण कमलों का स्पर्श कर अपने को अहोभागी समझते थे तथा आपकी सेवा में सदा निरत रहते थे। उपभोग इक्ष्वाकु राजा के कुल के तथा सेठ साहुकारों के १६००० मनुष्य पार्श्वनाथ स्वामी के पवित्र चरण कमलों में दीक्षान्वित हुए थे । आप के पास दीक्षित हुई ३८००० साध्वियाँ महिला समाज को सदुपदेश सुनाकर धर्म का उज्ज्वल मार्ग प्रदर्शित करती थी। जैन तीर्थकरो में श्री पार्श्वनाथ स्वामी का नाम ही खूब प्रख्यात है। और यंत्र तथा मंत्र भी पार्श्वनाथ स्वामी के नाम से अधिक हैं । अर्वाचीन समय में भी
अधिकतर जैनेतरों को पार्श्वनाथ स्वामी का ही परिचय है। .. पार्श्वनाथ स्वामी ने विहार विशेषतया काशी, कौशल, अंग, बंग, कलिंग, पंचाल, जंगल और कोनाल आदि प्रान्तों में किया था । उपरोक्त प्रान्तों अंग, बंग, मगध और कलिंग देश में आपने विशेष उपदेश देकर जैन धर्म का खूब अभ्युदय किया था। इसका यह प्रमाण है कि कलिंग देश के अंतर्गत उदयगिरि पहाड़ी की हाँसीपुर गुफा में आपका जीवनचरित शिलालेख के रूप में अबतक भी विद्यमान है । यह पहाड़ भी कुमार वीर्य के नाम से भाजला प्रख्यात है । आपकी शिष्य मण्डलीने भी उसी प्रान्त में अधिक विहार किया होगा ऐसा मालूम होता है।