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(१४४ ) जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा.
[ ११ ] ग्यारहवें पट्ट पर आयार्य सुस्थित सूरि तथा आचार्य सुप्रतिबद्ध सूरि हुए। आप दोनों सहोदर भ्राताओंने चम्पानगरी में जन्म लिया था। दोनोंने आचार्यश्री सुहस्ती सूरि के देशना से वैराग्य प्राप्त कर दीक्षा अंगीकार की। दोनोंने मानाध्ययन कर शासन के हितसाधन में अपने अमूल्य जीवन का समय बिताया था । आप दोनोंने विशेष कर कलिङ्ग देश ही में विहार किया था और वहां के प्रसिद्ध नरेश खारवेल को जो आपका परम भक्त था जैन धर्म को प्रचारित करने लिये खूब उपदेश दिया।सहस्रों जैन मन्दिरों और जैन विद्यालयों की प्रतिष्ठा कराई। कलिङ्ग के कुमार पर्वत को कलिंग शत्रुञ्जयावतार बनाया । आप श्रीमानोंने तीर्थ कुमारपर्वत पर क्रोड़वार सूरि मंत्र का जाप किया। अतएव आपकी सम्प्रदाय का नाम कोटिक प्रसिद्ध हुआ । दोनों आचार्योंने जिन शासन की उन्नति कर अपने पट्ट पर आर्य इन्द्रदिन को स्थापन्न कर कलिङ्ग शत्रुञ्जयावतार तीर्थ पर अनसन कर समाधी पूर्वक वीरात् ३२७ वर्षे स्वर्गसदन में निवास किया।
[१२] बाहरवें पट्ट पर आचार्यश्री इन्द्रदिन्न सूरि बड़े उपकारी हुए । आपका जन्म मथुरा निवासी कौशिक गौत्रिय सर्वहित विप्र के घर हुआ था। आपने ब्राह्मण वर्ण के अनुसार वेद वेदांगों का पूर्ण ज्ञान प्राप्त किया था । एक वार प्राचार्य सुस्थित सूरि का जब उस ओर पदार्पण हुआ तब वैराग्योपदेश सुनकर इन्द्रदिन्नने आचार्यश्री के पास दीक्षा ग्रहण की । मथुरानगरी में जो मिथ्यात्व का तिमिर अधिकांश में विद्यमान था वह अपनी