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महाराजा सम्प्रति। . (११) की व्यवस्था पर हृदय से कृतज्ञता प्रकट की। उसने सोचा कि जब मैं एक निराधार भिक्षुक था, दर दर पर दुर दुराया जाता था पर जब से मैं जैन मुनि हुआ हूँ सब मेरी बात सुनते हैं । आज यदि मैं बिमारी से ग्रस्त हूँ तो साक्षात् विश्व के हृदय सम्राट प्राचार्य महाराज भी मेरी वैयावञ्च करते हुए किसी भी प्रकार से मन में नहीं सकुचाते है । इस उच्चतर भावना से वह भिक्षुक उसी रात्रि मे वहाँ से काल कलवित हो कर. भूपति कुनाल की रानी के गर्भ में उत्पन्न हुआ। . इस भव में राजा के घर जन्मने पर इसका नाम सम्प्रति रक्खा गया । सम्प्रति का पिता उज्जैनी नगरी में रहता था । यह राज उसे महाराज अशोकसे मिला हुआ था। अतएव सम्प्रति का शैशव काल भी उसी नगरी में बीता । राजकार्य योग्य शिक्षा पाने के बाद उज्जैनी का राजमुगुट महाराज संप्रति के उन्नत सिर पर शोभने लगा। एक वार आचार्यश्री सुहस्तीसूरिः विहार करते हुए उज्जैनी नगर में पधारे । उस समय उस उज्जैनी नगरी में महावीर स्वामी की जीवित प्रतिमा का महोत्सव हो रहा था तथा तत् सम्बन्धी रथयात्रा का जुलूस भी निकल रहा था । आचार्यश्री भी चतुर्विध संघ के जुलूस में साथ थे। . झरोखे में बैठे हुए महाराजा सम्प्रतिने बड़े ध्यान से प्राचार्यश्री को देखा । देख कर उसका दिल भर गया। महाराजा सम्प्रति खूब उहापोह किया जिस से उसी समय उसे जाति स्मरण ज्ञान हुआ । पूर्व भव की सारी बातें उसे दिखाई देने लगीं।