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आचार्यश्री स्थलीभद्र। . (१३५) के करने में विरले ही समर्थ होते हैं । धन्य है इन्हें जिन्हों का मन अनुकूल परिसह से विचलित नहीं हुआ। स्थूलीभद्र का चारित्र प्रादर्श एवं अनुकरणीय था। ____ जैसा कि पहिले कहा जा चुका है कि उस समय देश में भयंकर दुष्काल था । स्थूलीभद्रने भीमकाय अटवी को पार कर भद्रबाहु स्वामि के पास जा दश पूर्व का सार्थ अभ्यास किया । भद्रबाहु स्वामि के साथ स्थूलीभद्र भी विहार करते पाटलीपुत्र नगर की ओर पधारे।
जब आप उद्यान में ठहरे थे तो स्थूलीभद्र मुनि के सात बहिने ( साध्वियों ) वंदन करने के लिये बाग में पाई । भद्रबाहु स्वामी को वंदन कर उन्होंने पूछा कि हमारे भाई स्थूलीभद्र मुनि कहाँ है ? हम उनकों भी वंदना करना चाहती हैं । मद्रबाहु स्वामीने बताया कि स्थूलभद्र उसकोने के कमरे में बैठे हैं, तुम जाकर वंदना कर लो । साध्वियाँ को अपनी ओर आती हुई देख कर स्थूलीभद्रने अपना रूप परिवर्तन कर सिंह का स्वरूप धारण किया | सिंह देख कर साध्वियांने सोचा कि भद्रबाहु मुनिने साधु दर्शन के निमित्त इस ओर भेजी थीं या सिंह दर्शन के हित ! उनके मन में यह भी संदेह हुआ शायद इस सिंहने इस कमरे में प्रवेश कर स्थूलीभद्र मुनि का भक्षण कर लिया हो। साध्वियाने लौट कर सब वृतान्त आचार्यजी को सुनाया। जिन्होंने श्रुतज्ञानोपयोग से मालूम कर लिया कि स्थूलीमद्र को ज्ञा