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आचार्यश्री स्थुलीभद्र.
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होने लगा | मंत्रीने राजा को भेट करने के लिये तरह तरह के शस्त्र और तैयार करवाए । वररुंचि को यह बात नहीं भाई । उसने इस कार्य से ही अपना मतलब सिद्ध करना चाहा । उसने राजा के पास जाकर कुछ नहीं कहा क्योंकि वह जानता था कि मैं शकडाल का द्वेषी हूँ अतएव राजा मेरी बात तो मानेगा नहीं । उस कविने एक युक्ति सोची । कुछ मिष्टान्न आदि का लोभ देकर नगर के बालकों को कहा कि क्यों तुम्हें मालूम नहीं है कि अपने नगर का मंत्री शकडाल अपने पुत्र श्रीयक जिस को तुम अच्छी तरह से पहिचानते हो इस नगर का राजा बनाना चाहता है । नंदराजा का वध करने के हेतु उसने कई अस्त्र शस्त्र तैयार करवाए है । अगर तुम अपने राजा के शुभचिन्तक या हितैषी हो तो घरघरमें यह बात फैला दो । मेरा नाम मत बताना नहीं तो शायद शकडाल मुझे भी राजा के साथ साथ मार डाले । उकसा हुए छात्रों ने नगर के कोने कोनेमें यह अफवाह फैलादी । यह बात राजा के कानों तक पहुँची। राजा यह सुनकर शकडाल पर कुपित हो गया ।
जब वररुचि को ज्ञात हुआ कि राजा क्रोधित हो गया है उसे अब किसी तरह का भान नहीं है, वह स्वयं राजा के पास जाकर कहने लगा कि आप गुप्तचर भेज कर शस्त्र अस्त्र का निरीक्षण भी करा लीजिये । केवल अफवाह का क्या भरोसा ? नौकर गुप्त तरहसे गये और सब शस्त्र अस्त्र देख आए । राजा को पूर्ण विश्वास हो गया कि शकडाल अवश्य मेरे प्राण लेने पर