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________________ आचार्य श्री भद्रबाहु सूरि. ( १२३ ) निन्दा करने लगा कि मेरे पर सिंहलग्न का सूर्य तुष्टमान हैं। उसकी कृपा से मैं विमान पर बैठ कर ज्योतिषी मण्डल का निरीक्षण कर श्राया हूं। मैं अपनी आँखों सब यह नक्षत्रों की गति देखी है अतएव इस विषय में मैं जितना कहता हूँ सब सत्य है। दूसरे ज्योतिष का झूठा ज्ञान रखते हैं । मेग ज्ञान प्रत्यक्ष एवं दूसरों का परोक्ष है । इत्यादि बालों की विडम्बना कर उसने एक ज्योतिष ग्रंथ निर्माण किया जिम का नाम उसने बाराहि संहिता ' ग्क्खा | एक वार वाराहमि - हि प्रतिष्टनपुर नरेश की राजसभा में अपनी विद्या को चमत्कारी सिद्ध करने के हेतु गया | उसने कुछ प्रयोग कर लोगों को चकित किया तथा कुप्पे की तरह फूल कर जैन धर्म की निन्दा करने लगा । यह बात उपस्थित जैन समुदाय के लिये असंगत एवं सहनीय थी । 6 . उन्होंने भद्रबाहु स्वामी को आमंत्रित कर बुलाया। बड़े समारोह के साथ भद्रबाहु स्वामी का नगर में प्रवेश हुआ। बाराहमिहिर तो नित्य राजसभा में जाया ही करता था और अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिये खुशामद कर अपनी आन, कान और मर्यादा का न तो ध्यान रखता था न आत्माभिमान रखता था । इधर जैन साधु किसीकी भी परवाह नहीं करते थे । खरी बातें बताकर जैन मुनि अपना प्रभाव डालने का अमोघ कार्य करते थे । बात ही बात में वाराहमिहिर ने राजसभा में विवाद के लिये एक प्रश्न किया कि आकाश से एक मत्स्य गिरने वाला है वह कितना भारी होगा ? उसने स्वयं ही अपने को पंडित सिद्ध करने के लिये शेखी से उत्तर दे दिया कि उसका भार बावन पल होगा । 1
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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