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जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा.
आचार्य भद्रबाहु स्वामीने उपयोग लगा कर देखा तो ज्ञात. हुआ कि वह मत्स्य साढे इक्यावन पल का गिरेगा । जब से लोगोंने यह बात सुनी तो राजा के कानों तक भी पहुंचा दी । और लोग मन ही मन कहने लगे आज बाराहमिहिर की जांच हो जायगी । अन्त में जब मत्स्य गिरा तो तोलने पर विदित हुआ कि वह बात जो आचार्यश्रीने कही थी बावन तोला पाव रची सिद्ध थी । मत्स्य पूरा साढे इक्यावन पल भारी था । इस से बाराह मिहिर का अपमान हुश्या । वह कूट कर जैन धर्म की और भी विशेष निन्दा करने लगा ।
इन्हीं दिनों में राजा के एक पुत्र जन्मा । जन्मोत्सव मनाने के लिये एक भारी सभा हुई। चारों ओर हर्ष और उत्साह था । बाराहमिहिर एक कोने में बैठा लोगों की दृष्टि में हेय समझा जाता था । अन्त में बाराहमिहिर ने राजा को उकलाने लिये कहा कि आप देख लीजिये जैनी लोग कितने अभिमानी और लापरवाह होते हैं कि ऐसी सभाओं में नहीं आते । देखिये भद्रबाहू मुनि 1 आराम से अपने आश्रम में बैठा है, यहाँ तक आने में मी अपनी इतक समझता है । यह प्रसंग छेड़ कर उसने अपने मनकी बाफ निकालनी आरम्भ की ।
राजाने आज्ञा दी कि जाओ और भद्रबाहु जैन मुनि को अवश्य बुलायो । वैसे तो वे सच्चे हैं, आज हमारी सभा में आए क्यों नहीं ? भद्रबाहु सूरीने राजसभा में प्रवेश किया । राजाने