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( १९०) जैन जातिमहोदय प्रकरण पांचवा. जीवन पर्यन्त शीलव्रत रक्खूगा । धन्य ! धन्य ! जम्बुकुमार भातुरता से अपने माता पिता के पास पहुंचा और उसने अपने निश्चय की बात कह सुनाई और भिक्षा मांगी की मुझे आज्ञा दीजिये ताकि मैं दीक्षा ले कर अपने जीवन के उद्देश्य को प्राप्त करने में शीघ्र समर्थ होऊ ।
ऋषभदत्त और धारणी कब चाहती थी कि ऐसा अद्वितीय पुत्र हम से दूर हो । पुत्रने प्रार्थना करने में किसी प्रकारकी भी कमी न रक्खी । वैराग्य के रंग में रंगा हुश्रा कुमार संसार में रहने के समय को भार समझने लगा । पिताने उत्तर दिया नादान कुमार इतने क्यों अधीर होते हो ? अभी तुम्हारी आयु ही क्या है ? हमने तुम्हारा विवाह रूपवती शीलगुण सम्पन्न आठ कन्याओं से कराना निश्चय कर लिया है। अब न करने से सांसारिक व्यवहार में ठीक नहीं लगती । यदि तुम्हें हमारी मान मर्यादा का तनिक भी विचार है तो विह्वल मत हो. बात मान ले । विवाह करने से आनाकानी मत कर, क्या तूं हमारी इतनी बात तक न मानेगा ? तूं एक आदर्श पुत्र है । हमारी बात मान करविवाह तो कर ले । जम्बुकुमार दुविधा में पड़ गया । पाहा कारी पुत्रने पिता की बात टालनी नहीं चाही । विवाह करने की हामी भर दी। पुत्र के ऐसे विनय व्यवहार से पिता माता बहुत उल्लासपूर्वक विवाह के लिये तैयारी करने लगे। सारी सामग्री बात की बात में एकत्रित हुई। कन्याओं के माता पिताने विवाह की तैयारी कराने के प्रथम अपनी आठों बालिकाओं को बुला कर पूछा कि