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________________ भगवान् जम्बु आचार्य. ( १०९ ) धर्मोपदेश करते हुए बडी खूबसे प्रमाणित किया कि संसार असार एवं कष्टप्रद है तथा इस द्वंद को हरने का उपाय दीक्षा लेना है । इससे मुक्ति का मार्ग मिल सकता है। सचे उपदेश का प्रभाव भी खूब पड़ा । जम्बुकुमार के कोमल हृदय पर संसार की असारता अंकित हो गई । जम्बुकुंबरने विचार किया कि पूर्व पुन्योदय से ही इस मानव जीवन का आनन्द मुझे अनुभवित हुआ है । बड़े शोक की बात होगी यदि मैं इस अपूर्व अवसर से किसी भी प्रकार का लाभ न उठाऊँ ! बार बार मानवजीवन मिलना दुर्लभ है । अब देर कर के चुप रहना मेरे लिये ठीक नहीं ऐसा सोचकर उन्होंने निश्चय किया कि आचार्यश्री के पास ही दीक्षा ले लेनी चाहिये | इससे बढ़कर कल्याण की बात मेरे लिये क्या हो सकती है ? जम्बुकुमारने आचार्यश्री के पास जाकर अपने मनोगत विचार प्रकटित कर दिये । जम्बुकुमार इन्हीं विचारतरंगो में गोता लगाता हुआ नगर को लौट रहा था कि एक बन्दूक की आबाज सुनाई दी । देखता क्या है कि एक गोली पास होकर सरररररर निकल गई ! कुंवर बालबाल बच गया । जम्वु कुंवरने विचार किया कि यदि मैं इस घटना से पंचत्व को प्राप्त होता तो मेरे मनोरथ टूट जाते अब देर करना भारी भूल है। कौन कह सकता है कि मृत्यु कब आ जावे | उन्होंने सोचा क्षण भर भी व्यर्थ बिताना ठीक नहीं | इस समय मैं क्या कर सकता हूं यह सोचने कि देर थी किं तत्काल आत्मनिश्चय हुवा कि मैं आ जन्म ब्रह्मचारी रहूंगा । मन ही मन पूर्ण प्रतिज्ञा कर ली कि मैं सम्यक् प्रकार से
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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