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________________ ( १०८ ) जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा. 1 आचार्य हुए | आप का जन्म मगधदेश के अन्तर्गत राजगृहनगर के निवासी कश्यप गोत्रिय ( उत्तम क्षत्रिय ) छनवें क्रोड़ सुवर्ण मुद्रिकापति श्रेष्टि ऋषभदत्त की हरितन गोत्रिय भार्या धारणी के कूखसे हुआ था । जब ये गर्भ में थे तो इन की माता को जम्बू सुदर्शन वृक्ष का स्वप्न आया था । ये पंचम ब्रह्मदेवलोक से चल के अवतीर्ण हुए । जब ये गर्भ में थे तो इन की माता को कई कई पदार्थों को प्राप्त करने की इच्छा उत्पन्न हुई थी । ऋषभदत्तने बहुत हर्षोत्साहसे धारणी को इष्ट वस्तुएँ द्वारा मनोरथ पूर्ण किये । शुभ घड़ीमें आप का जन्म हुवा था | जन्मोत्सव बड़े धूमधाम से किया गया । स्वप्न के अनुकूल आप का नाम जम्बुकुमार रक्खा गया । आपने अपनी बाल्यावस्था खेलते कूदते बहुत प्रसन्नतापूर्वक बिताई | आपने शिक्षा ग्रहण करनेमें किसी भी प्रकार की कमी नहीं रक्खी । आप बहोतर कला विज्ञ थे । जब आप विद्या पढ़कर धुरंधर कोटि के विद्वान हुए तो मातापिताने इन्हीं के सदृश गुणोंवाली विदूषी रुपवती देवकन्या सदृश आठ कुर्लान लड़कियोंसे आप का विवाह कराना उचित समझा | इधर भगवान सौधर्माचार्य विचरते हुए राजगृह नगरी की और पधारे। आपने आकर गुणशिलोद्यान नामक रमणीक स्थानमें उपदेश सुनाना आरम्भ किया । नगर के सारे लोग सूरिराज का दर्शन करने को आतुरता से उद्यानमें आकर अपने जीवन को सफल बनाने लगे । ऋषभदत्त भी धारणी और जम्बुकुमार सहित सूरीश्वरजी की सेवामें दर्शनार्थ मा उपस्थित हुआ । आचार्यश्रीने
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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