________________
भगवान् सौधर्माचार्य.
( १०७ )
सहित दीक्षित हो कर भगवान के शिष्य हुए । भगवानने इन्द्रसे लाए हुए वासक्षेप से विधिपूर्वक एकादश अध्यापकों को गणधर पद पर रोहित किया । इन्ही में से सौधर्म एक गणधर थे । हेय ज्ञेय और उपादेय इन तीन शब्दोंसे ही सारे तत्वज्ञान की शिक्षा पा कर सौधर्मस्वामीने द्वादशांग की रचना की । इस रचना द्वारा किया हुआ असीम उपकार भूलने योग्य नहीं है । सारा संसार आज उन सिद्धान्तों का कायल है । आज जो संसारमें जैनधर्म का जो अस्तित्व है वह प्रताप आपका ही है । आप के रचित शास्त्रों के कारण ही अनेक जीवोंने अपना व पराया आत्मोद्वार किया है तथा इस पंचम आरे के अन्ततक कई प्राणी अपनी आत्मजागृति करेंगे | यह सब आप का ही अनुग्रह है । आप बड़े धर्म धुरंधर आचार्य हुए आप चतुर्विध संघ के नायक थे तथा शासन को सुचारु रुपमे चला कर जैनधर्म को देदिप्यमान करने में आप पूरे समर्थ थे | आप ५० वर्ष पर्यन्त गृहस्थावस्था में रहे तत् पश्चात् ३० वर्ष पर्यन्त महावीरस्वामी के पास रह कर उन की भली भांतिस सेवा की । १२ वर्ष पर्यन्त श्रापने छद्मस्त अवस्थामें रह कर ८२ वर्ष की वायुमें केवल्यज्ञान की प्राप्ति की, जिस समय की गौतमस्वामी का निर्वाण हुआ था । आठ वर्ष तक कैवल्य अवस्था में रह कर संसार का उपकार करते हुए सौवर्ष की पूर्ण आयुमें वीरात् सं. २० में अपने पद पर जम्बुस्वामी को स्थापित कर आपने अक्षय सुखदायक परमपद को प्राप्त किया ।
[ २ ] दूसरे पट्टपर आचार्य जम्बूस्वामी बड़े प्रभावशाली