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भगवान् महावीर स्वामी की वंश परम्परा का
(इतिहास)
तीय प्रकरणमें आदि तिथंकर श्री ऋषभदेवसे लेकर अन्तिम तिथंकर महावीर प्रभु का जीवन संक्षिप्त तया लिखा जा चूका हैं । इस प्रकरणमें
उसके बाद का इतिहास लिखा जायगा । भगवान् महावीर स्वामी के पीछे कितने प्राचार्य कब कब हुए और उन्होंने क्या क्या कार्य किये, इस का वृतान्त इस प्रकरण में विस्तारसे दिया जायगा।
भगवान महावीर के ११ गणधर हुए। उनमें नौगणधर तो भगवान के जीवनकाल ही में राजगृह के व्यवहारगिरि तीर्थपर परमपद को प्राप्त हो गये थे। भगवान् इन्द्रभूति (गौतम स्वामी ) को महावीरस्वामी के निर्वाण की रात्रि के अन्तिम कालमें कैवल्यज्ञान उत्पन्न हुआ था। शेष गणधर सौधर्मस्वामी जो भगवान के पचम गणधर थे। सौधर्मस्वामी ही श्री महावीर के उत्तराधिकारी होने के कारण आचार्यपद पर सुशोभित हुए ।
[१] प्रथम पट्ट पर प्राचार्य श्री सौधर्मस्वामी आरोहित हुए। भाप का जन्मस्थान सभिवेश केलाग था । इनके पिता का नाम धार्मिल था जिन का गोत्र वैशंपायन ब्राह्मण था | आप का जन्म हरद्रायण गोत्र की माता भादिला की कूख से हुआ था। पिताने