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________________ (१०२) जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा. जानियाँ के नाम चौथे प्रकरण में बताए गये हैं। किन्तु इन अढारह गोत्रों के अतिरिक्त और उस समय कितने गोत्र थे, इस का उल्लेख कहीं भी अब तक नहीं मिला है । ) जैसे जैसे मंत्राशर से अभिषेक होता गया तथा पूजा बनने लगी वैसे वैसे अनुपात से रक्तधारा बंद होती गई । पूजा सम्पूर्ण होते ही उपकेशपुर के घर घर में हर्ष ध्वनि उद्घोषित होने लगी। प्राचार्यश्री की अनुगृह कृपा से देवी का कोप भी मिट गया । संघन विनती की और प्राचार्यश्रीने स्वीकार कर चतुर्मास भी वहीं किया। यह समय मूल प्रतिष्ठा से ३०३ वर्ष पश्चात था अर्थात वीर मं. ३७३ वा विक्रम पूर्व मं.६७ की यह घटना थी ।* ___ कितने ही लोग कहते हैं कि इस उपद्रव के कारण उपकेंशपुर से सब महाजन चले गये और अन्य स्थानों में जा बमे ! उस दिन से ओसवाल ओशियाँ में नहीं बनते हैं और कोई कोई इतना तक कहने की भी धृष्टता करता है कि ओसवाल रात्तार भी वहां नहीं रह सकते हैं । यह बात बिल्कुल निराधार एवं प्रमाणहित है । का गा यह कि न तो उस समय महाजन वश का नाम ही ओसवाल था न उपकेशपुर का नाम ही प्रोशियाँ था। इतिहास से यह पता चलता है कि विक्रम की दशवी ईग्यारवीं शताब्दि तक तो बडे बडे धनाढ्य महाजन ( उपकेश वंशी ) लोग उपकेशपुर ही में रहते थे और वह नगर व्यापार का एक बड़ा भारी केन्द्र था । अब सं उपकेशपुर के पास का समुद्र दूर हो गय तब से ही व्यापार के प्रभाव बस्ती घटने लगी। लोग दूर दूर जाकर बस गये। उपकेशपुर के अजहने का दुसरा कारण यह भी था कि विक्रम की चौदहवीं शताब्दि में कितने ही वर्ष तक निरन्तर अकाल पडने लगे | नगर की दशा बढी भयंकर हो गई । उन वर्षों में लोग उपकेशपुर त्याग त्यागकर अन्य प्रान्तों में जा बसे । इन कारणों से महाजनों की बसती कम हुई । पर ऐसा उल्लेख कहीं भी नहीं मिला कि लोग उपकेशपुर को यकायक एक साथ
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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