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प्राचार्यश्री कक्कसरि. (१०१) किये । यथा-(१) तातेहड़ गोत्र (२) बाफणा गोत्र (३) कर्णाट गौत्र (४) वलहा गोत्र (५) मोरक्ष गोत्र (६) कुलहट गोत्र (७) विरहट गोत्र ८) श्री श्रीमाल गोत्र (९) श्रेष्टि गोत्र । इन नौ गोत्रों वाले स्नात्रिय प्रभु के दक्षिण की ओर पूजा सामग्री हाथ में लिये खड़े थे । (१) संचेती गोत्र (२) अदित्यनाग गोत्र (३) भूरिगोत्र (४) भाद्रगोत्र (५) चिंचटगोत्र (६) कुंभट गोत्र (७) कनौजिये गोत्र (८) डीडूगोत्र (९) लघुश्रेष्टि गोत्र । इन नौ गोत्रोंवाले स्नात्रिय प्रभु के बांई ओर जल, पुष्प, फल, चन्दन, अादि पूजा की सामग्री लिये खड़े थे । ( इन अढारह गोत्रों की शाखा प्रशाखा ४६८
कणाट से आए हुए समुदाय को कर्णाट गोत्र । कनौज से माए हुए समुदाय को कनौजिय गोत्र । भाद्रा से पाए हुए समुदाय को भाद्रा गोत्र । डीडूनगर से आए हुए समुदाय को डिडू गोत्र । आदित्यनाग प्रसिद्ध पुरुष के नाम से आदित्यनाग गोत्र । महाराजा उपलदेव के समाज में एक श्रेष्ठ पुरुष होनेसे श्रेष्ठि गोत्र । • सूचना करने वालों को संचेती गोत्र ।
इसी प्रकार सिन्ध, कच्छ पंजाब प्रादि के महाजन संघ व गोत्र में म्हलाए । इससे यह सिद्ध होता है कि उस समय में उपकेशपुर में व्यापार की खूब वृद्धि थी। इसी प्रकार भिन्न भिन्न प्रान्तों से लोग पाकर वहां निवास करने लगे । जैन धर्म स्वीकार कर वे भहाजन संघ में मिलते जाते थे।
इत्यादि कारणों में अलग अलग गोत्रों का होना स्वाभाविक वात थी। और गृहस्थों के लग्न व्याह आदि में इन गोत्रों को निर्माण करने की आवश्यक्ता भी थी। इन गोत्रों के कारण महाजन संघ में किसी भी प्रकार की लघुता गुरुता का विचार मत्पन्न नहीं हुमा था। जिस तरह आज भोसवाल पोरगल और श्रीमाल एक दूसरे को मापस में हटा समझते हैं ऐसी फूट तब न थी।