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________________ ( १०० ) जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा. श्राचार्यश्री को करानेवाले को ध्यानपूर्वक देवीने सुन लिया | वापस आकर उसने सब बातें सुनाई । देवीने कहा कि शांतिस्नात्र पूजा तो प्रथम अष्टम तप करना चाहिये । स्नात्रियाँ को तीन दिन तक 1 खण्ड ब्रह्मचर्य पालना चाहिये । सब मिलाकर अष्टादश स्नात्रियाँ की आवश्यक्ता होती है, जो मंत्राक्षरपूर्वक शांतिस्नात्र पूजा करावेंगे । घृत, दूध, दहीं, इतु और जल का पंचामृत बनाकर एक सो आठ कलश भरवाने चाहिये तथा श्रीफल, पुंगीफल, आदि शुभ पदार्थों का भी यथोचित प्रयोजन होना आवश्यक है । उपरोक्त विधि के विधान से ही उपस्थित उपद्रव शांत विस्तारपूर्वक सुना दीं तथा सुनाकर अपने गई | आचार्यश्रीने प्रातःकाल होते ही सब संघ को उपाय विधिसहित सुना दिया। बात की बात में त्रित हुई | श्री संघने प्राचार्यश्री को पूजा का श्रापश्री की देखरेख में पूजा का कार्य आरम्भ त्रिय बनते समय पट्टावलीकारोंने श्रष्टादश गौत्रों के नाम भी निरुपण सब मामग्री एक अध्यक्ष बनाया | किया गया । स्ना · होगा । देवीने सब बातें स्थान को प्रस्थान कर बुलाक उपरोक्त *गोत्रों का श्रेणी बन्धन कब और किस प्रकार से हुआ यह निश्चयात्मक रूपसे नहीं कहा जा सकता । किन्तु अनुमान होता है कि महावीरस्वामीने पूर्व बंगाल में जाति या वर्ण का बन्धन तोड दिया था तब सब जाति के मिश्रित जैनों के एक वर्ण ही की कई शाखाएं कहलाई जिनसे पहिचान हो आती थी। जैसे मटर गौत्र, वैशियाण गोत्र, सडल गोत्र, तंगियाण गोत्र, और तुंगल जादि गोत्र कहलाए हैं। इसी प्रकार मरूस्थल यादि प्रान्तो में प्राचार्य स्वयंप्रभसूरी, रत्नप्रभसूरीने महाजन संघ स्थापित किये । उनके गोत्र भी कारण पा पा कर इस प्रकार कहलाए - - श्रीमालनगर से आए हुए समुदाय को श्री श्रीमाल गोत्र ।
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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