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आचार्यश्री कक्क सूरि.
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आचार्य:- - " मेरी यह ही श्राज्ञा है कि इस उपद्रव की शांति शीघ्रातिशीघ्र होनी चाहिये ।
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देवी :- " इस महान उपद्रव की शांति के निमित्त शांतिपूजा कराने की नितान्त आवश्यक्ता है ।
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आचार्यः – “ वैसे तो शांतिपूजा विभिन्न प्रकार की है पर इस अवसर पर कौनसी पूजा कराना उपयुक्त होगा ? वह पूजा ऐसी चुनिये जिस की सर्व सामग्री यहाँ उपलब्ध हो सक्ती हो ।
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देवी :- " प्राचार्य श्री ! आप तो केवल वासक्षेप मात्र के विधिविधान से भी शांति स्थापन करनेमें समर्थ हैं पर इस समय ऐसी शांति पूजा श्यक्ता है कि जिसे जान कर और लोग भी ऐसे अवसरों पर शांतिपूजा विधिसहित कर लाभ उठा सकें ।
आचार्य: - " बिना शास्त्रों के
विधान बताना उचित नहीं समझता । पूछना उचित होगा ।”
देवी:
आपका यह परामर्श मुझे भी ठीक जचना है । "
आचार्य:- -" तो अबिलम्ब करना उचित नहीं । ""
-:
आधार के मैं कोई नया श्रीसीमंधर स्वामी से ही विधि
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देवी:- " तो मैं महाविदेह क्षेत्रमें जाती हूँ ।
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आचार्य:: - " जहाँ सुखम् । "
देवीने महाविदेह क्षेत्र में जाकर भगवान् श्री सीमंधरस्वामी को वंदना की एवं शांति पूजा का विधिविधान पूछा । और भगवान के फरमाया हुआ विधिविधान सब वृतान्त