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(९६) जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा. होने के कारण ही यह अनर्थ उपस्थित हुआ था। सब इस चिन्ता में व्यस्त थे कि इसका प्रतिकार क्या किया जाय ? अन्त में दूसग कोई उपाय न देख कर सब एकत्र हो उपाश्रय में मुनिराज के पास गये । वहाँ जा कर सब वृत्तान्त कह सुनाया । श्रावकोंने कहा कि युवक नादान थे। उन्होंने भूल की है। आप ही कुछ उपाय बताइए कि यह विघ्न किस प्रकार शांत हो सकता है । जैसा आप कहेंगे वैसा हम करेंगे । वहाँ स्थित मुनिराजोंने कहा कि निसन्देह यह पाशातना अनर्थकारी है इसकी शांति कराना हमारे सामर्थ्य से परे है। इस की शांति कराने वाले आचार्य श्री कक्कसूरि जैसे महात्मा ही । वृद्धजनोंने पूछा कि प्राचार्य श्री कहां विराजते हैं ? मुनिराजोंने उत्तर दिया, " श्राबू या गिरनार तीर्थ पर किती कन्दरा में यान लगाए हुए वे बैठे होंगे ।" यह समाचार सुनते ही वे आकाशमार्ग द्वारा एक मुहूत में यहाँ पहुँच कर रक्त का प्रवाह रुकवा देंगें । अब बिलम्ब करना उचित नहीं । सबने एक निमंत्रण लिख कर शीघ्र गामिनी सांढड़ी ( उँटनी ) पर एक आदमी को भेजा जो एक दिन ही में गिरनार गिरि की कन्दराओं के पास आ पहुँचा । उसने वन्दना करने के पश्चात् पत्र दिया । समाचार जान कर
आचार्यश्री को शोक हुआ । आकाश गामिनि लब्धि के कारण वे तो एक मुहूंत में ही उपकेशपुर नगर श्रा पहुंचे। वहाँ की दशा देख कर उनका दिल वेदना से विह्वल हो उठा। सच्चाइ का देवी क्रोध से आगबबूला हो कर इतनी विक्षुब्ध हुई के उसे