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________________ (११) प्राचार्यश्री यक्षदेवसूरि. सबके सामने कह सुनाया। राजाने कहा कि आप वही महात्मा स्वरूप है । मेरा स्वप्न तो एक प्रमाणमात्र है। आप मुझे बांह पकड़कर दुःखसे बचाइये। __ आचार्यश्रीने उत्तर दिया " जहा सुखम् " । सभा यह वाक्य सुनकर मानो मंत्र मुग्ध हुई । कई लोगों की इच्छा हुई कि इस शुभ अवसरका सदुपयोग करना चाहिये । वे सोचने लगे कि आज हमारा परम सौभाग्य है कि ऐसे त्यागी वैरागी निर्लोभी महात्मा केवल परोपका के लिये सच्चा उपदेश दे रहे हैं । लोग उत्कट आतुरता पूर्वक सांसारिक बंधनो को तोड़ना चाहते थे । महाराजा खेतसीने अपने जेष्ट पुत्र जेतसी को राज्यका भार सोंप दिया । राजा खेतसीने अपने छोटे पुत्र लाखणसी और कई लोगों के सहित आचार्यश्री के पास आकर, करजोड़ सादर विनय की कि हमलोग दीक्षा लेना चाहते हैं। हमें आशा है आप अवश्य हम लोगों का उद्धार करेंगे जिम प्रकार कि एकस्वप्न में एक महात्माने आकर मुझे लाखाण कुँवर सहित प्रज्वलित अग्नि की ज्वालाओं से बचाया था । आचार्यश्री तो यह चाहते ही थे। सब की प्रार्थना स्वीकारकर शुभ मुहूर्त में दीक्षा दे श्राचार्यश्रीने अपूर्व उपकार किया। सञ्चाइका देवी आचार्यश्री की मेवा करने में सदा प्रस्तुत रहती थी । देवीने मापसे कहा मरुस्थल में आपके पधारने से लाभ हुआ न ? आपने उत्तर दिया, “ अवश्य तुम्हारा कहना सत्य हुआ ! " इसी कारण से रत्नप्रभसूरिने पापका नाम सपाइका
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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