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(८२) जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा. क्षमण तप किया । छठ्ठ छठ्ठ के उपवास के पश्चात् पारणा करना आप का जीवनभर का प्रण था । इस तप के अतिरिक्त आपने दूसरे बड़े बड़े तप भी खूब किये । तपस्या के साथ साथ आपने ज्ञान का अभ्यास भी खूब किया । सामयिक साहित्य के श्राप धुरंधर विद्वान थे । आप कई राजसभाओं में जा कर शाखों के तत्वों की विशद विवेचना करते थे । आप वादविवादियों के भ्रम को दूर करते थे। इस कारण स्याद्वाद धर्म के विजय का नक्कारा चारों दिशाओं में बजने लगा था। धर्म की जय पताका पूर्णरूप से फहरामे लगी।
देशाटन करने की अभिरुचि आप में स्वाभाविक थी। भ्रमण करते हुए आपने देश के भिन्न २ प्रान्तों की यात्रा की । पंजाब सिन्ध, कच्छ सोरठ लाट और मरूस्थल आदि प्रान्तों में आपने पर्यटन करते हुए जैन धर्म का अपूर्व अभ्युदय किया। सच्चा ज्ञान बता कर मिथ्यात्व के अंधेरे कूए. में से कई प्राणियों को बचाया । सच्चा उपदेश सुनाकर आपने कई भव्य जीवों का उद्धार किया । हजारों स्त्री पुरुषों को जैन धर्म की दीक्षा दी। इस कारण श्रमण संघ में आशातीत वृद्धि हुई। मिथ्यात्व भज्ञान, पाखण्ड और अंधश्रद्धा को दूर कर सम्यक्त्व, ज्ञान, प्रेम और शुद्ध श्रद्धा का प्रसार किया | अहिंसा परमोधर्म का विजयनाद सब प्रान्तोमें सुनाया। कई विद्यालय स्थापित कराए तथा मन्दिरों की प्रतिष्ठा कराने में भी आप सदा अग्रसर रहते थे। उस समय में आचार्योंको विशेषतया चार प्रकार के कार्य करने पड़ते थे।