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(20) जैन जातिमहोदय प्रकरण पांचवा. काल कर स्वर्गमें अवतीर्ण हुए । इति श्री भगवान् पार्श्वनाथ के दसवें पाट पर प्राचार्यश्री सिद्धसूरीश्वरजी महाराज महान् प्रभाविक श्राचार्य हुए।
भगवान पार्श्वनाथ की सन्तानमें उपकेश · गच्छकी स्थापना समयसे प्राचार्यश्री रत्नप्रभसूरि, प्राचार्यश्री यक्षदेवसूरि, प्राचार्यश्री कक्कसूरि, प्राचार्यश्री देवगुप्तसूरि और प्राचार्यश्री सिद्धसूरि एवं पांच प्राचार्य महा प्रभाविक हुए और इन पांचाचार्यों के नामसे ही प्राज पर्यन्त उपकेशगच्छ अविछन्नपने चल रहा है।
(१) मरूस्थलमें प्राचार्य श्री रत्नप्रभसूरि का नाम अमर है। (२) मगधदेशमैं , , यशदेवसूरि का नाम अचल है । (३) सिन्धमें ,, ,, ककसूरि का नाम अक्षय है। (४) कच्छप्रान्तमें , , देवगुप्तसूरि का नाम अटल है । (५) पंजाबप्रान्तमें ,, , सिद्धसूरि का नाम अपार हैं।
इन महापुरुषों की बदोलत उन की सन्तानने पूर्वोक्त प्रान्तोंमें चिरकाल तक जैनधर्म को राष्ट्रीय धर्म बना रक्खा था, आज जो जैन जातियों जैनधर्म पालन कर स्वर्ग मोक्ष की अधिकारी बन रही है वह सब उन महान् प्रभावशाली प्राचार्यों के उपकार का ही सुन्दर फल है । अतःएत्र जैन जातियों का कर्तव्य है कि अपने पर महान् उपकार करनेवाले पूज्याचार्यों के प्रति सेवाभक्ती प्रदर्शित करते रहें।