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________________ (७८ ) जैन बाति महोदय प्रकरण पांचवा. प्रामनगरों की विनन्तीसे अन्योन्य साधुओं को वहां चतुर्मासा करवा दिया। नए जैन बनाना वहां जैन मंदिरों और विद्यालयों की स्थापना करवाना तो प्रापश्री के पूर्वजोंसे ही एक चलित कार्य था और आपश्रीने भी उनका ही अनुकरण किया और श्रापश्रीने इस पवित्र कार्य में अच्छी सफलता भी प्राप्त की थी इनके सिवाय श्री का मधुर और रोचक उपदेश पान करते हुए बहुतसे नर नारियोंने संसार का त्याग कर आप के चरण कमलों में दिक्षा भी धारण की थी । चातुर्मास के पश्चात प्राचार्य श्री ने मरूभूमि के चारों भोर खूत्र परिभ्रमण किया और पाहलीका नगरीमें एक विराट् सभा कीरी जिसमें हजारों साधु साध्वियों और लाखों श्रावक उपस्थित हुए श्राचार्यश्रीने पूर्वाचार्यों का परमोपकार महाजन संघ की महत्वता और देशोदेशमें विहार करने का लाभ खूत्रे ही प्रो जस्वी भाषा से विवेचन कर सुनाया अन्तमें आचार्यश्रीने यह फरमाया कि इस समय जैनधर्म पर दृढ श्रद्धा के लिये जैन मन्दिरो को और तत्वज्ञान फैलाने को विद्यालयों की जरूरत है और जैन मुनियों कों देशोदेशमें विहार कर, जैनधर्म का प्रचार करने की भी आवश्यकता है अत एव चतुर्विध श्री संघ यथाशक्ती इन कार्यों के लिए प्रयत्नशील बने और इन पवित्र कार्यों के लिये अपना सर्वस्व अर्पण कर भाग्यशाली बनें । इत्यादि प्राचार्यश्री के उपदेश का असर जनता पर अच्छा पड़ा कि वह अपने अपने कर्तव्य कार्यपर कम्मर कस तैयार हो गए बड़ी खुसी की बात है कि उस जमानेमें जैसे प्राचार्यश्री धर्मप्रचार करनेमें कुशल
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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