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________________ (७६) जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा. के शरीर में जैन धर्म की पवित्रता की बड़ी भारी ताकत थी श्रहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य, निस्पृहीता, परोपकार परायणता, और स्याद्वादरूपी अनेक शस्त्रोंसे सजधज के सदैव तैयार रहते थे और उन्हीं शस्त्रद्वारा आप श्रीमानोंने पाखण्डियों का पराजय कर उनके मिथ्यात्व अज्ञान यज्ञ की घौर हिंसा और दुशीलरूपी किल्ले को समूल नष्टकर विश्व में जैन धर्म का खूब झण्डा फरका दिया अगर उन आचार्यों की सन्तानने अपने पूर्वजों का अनुकरण कर प्रत्येक प्रान्त में बिहार किया होता तो आज कितनीक प्रान्तों जैन धर्म विहिन न बन जाती तथापि आज उन प्रान्तों में पूर्व जमाने की जाहोजलाली के स्मृति चिन्हरूप जैन तीर्थ - मन्दिर और थोड़े बहुत प्रमाण में जैन धर्मोपासक अस्तित्वरूपमें दिखाई दे रहे हैं वह उन पूर्वाचार्यों की अनुग्रह - कृपा का सुन्दर फल है । हमारे पूर्वाचार्योंकी यह भी एक सुन्दर पद्धतिथी कि वे देश विदेशमें विहार करते थे पर किसी प्रान्त को साधुविहिन नहीं रखते थे अर्थात् प्रत्येक प्रान्तमें योग्य पद्वी भूषित विद्वान मुनिवरों की अध्यक्षता में हजारों मुनियों को विहार की भाज्ञा फरमा दिया करते थे कि जैन जनता सदैव के लिए उन्नतिक्षेत्र में अपने पैर भागे बढाती रहे वात भी ठीक है कि जहां जैन मुनियों का सदैव विहार होता रहे वहां मिथ्यात्व अज्ञान मौर दुराचार को अवकाश ही नहीं मिलता है विद्वानों की अपेक्षा मध्यम कोटी के लोग सदैव अधिक होते हैं और उन का जीवन उपदेश पर निर्भर है जैसा २ उपदेश मिलता रहे वैसा २
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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