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________________ (७४) जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा. पार्श्वनाथ भगवान के नौवें पाटपर प्राचार्यश्री देवगुप्तसूरि बडे ही प्रभाविक प्राचार्य हुए। (१०) दशवे पट्टपर प्राचार्यश्री सिद्धसूरिजी महाराज बड़े ही प्रभाविक प्राचार्य हुए आप श्री चन्द्रपुरी नगरी के राजा कनकसेन के लघुपुत्र थे वाल्यवय में ही सिद्धार्थ नामक वेदान्ती प्राचार्य के पास दिक्षित हुए थे आप बाल ब्रह्मचारी और अनेक विद्याओं के ज्ञाता थे, सत्य के संशोधक थे, धर्म के जिज्ञासु थे, मोक्ष के अभिलाषी थे, ज्ञान के प्रेमी थे, सरस्वती और लक्ष्मी दोनों देवियों परस्पर स्पर्धा करती हुई सदैव आप को वरदाई. थी जैन दिक्षा स्वीकार करने के बाद प्राचार्य देवगुप्तसूरि की सेवा भक्ती से स्याद्वाद सिद्धान्त में भी बड़े ही प्रवीण हो गए थे धर्म प्रचार करने में बड़े ही समर्थ थे पाखण्डियों के पैर उखाडने में आप अद्वितीय वीर थे । आपश्री की वचनलब्धी से मनुष्य तो क्या पर देवता भी मुग्ध बन जाते थे। जैसे आप तेजस्वी थे वैसे ही यशस्वी भी थे आपश्रीने पंचाल देशमें विहारकर अनेक भव्यात्माओं का उद्धार किया इतना ही नहीं पर जैन धर्म का बड़ा भारी झएडा फरका दिया था । वादी लोग आपसे इतने घबराते थे कि सिंह गर्जना सुन हस्ती पलायन हो जाता है इस रीती से सिद्धसूरि का नाम सुनते ही वे कम्प उठते थे। अभिमा. नियों के मद गल जाते थे । आपश्रीने हजारों लोगों को दिक्षा दे श्रमण संघ में खूब वृद्धि की थी। सेकड़ों जैन मन्दिरों की प्रतिष्ठा और ज्ञानाभ्यास के लिए अनेक पाठशालाएं स्थापित करवाई थी
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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