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आचार्यश्री देवगुप्तसूरि. ( ७३ ) पंजाबदेश में विहार कर जैनधर्म का खूब प्रचार किया बहुत से मन्दिरों की प्रतिष्ठा और अनेक विद्यालयों की स्थापना करवाई हजारों भव्यों को जैनधर्म की दिक्षा दी लाखों लोगों को मिथ्या कुरूढियों से जुड़ा करके जैनधर्मोपासक बनाए और सिद्धपुत्र मुनि को योग्य समझ शुभ मुहूर्त और अच्छे दिनमें आचार्य पदसे विभूषित बनाए और उनकों पंजाब देशमें विहार करने की माझा फरमाकर आप प्राचीन तीर्थोंकी यात्रा करनेके लिये हस्तिनापुर मथुरा शोरीपुगरि प्रदेशों में विहार करते हुए मरूभूमि की घोर पधार गए। यही तो उन आचार्यदेवों की कार्यकुशलता थी कि वे हर समय देशविदेश में घुमते रहते थे इसी कारण से जैनधर्म का प्रचार दिन व दिन बढता गया ।
श्राचार्य श्री देवगुप्तसूरिने कई घर्से तक मरूधर में बिहार कर श्रमण संघ और श्राद्धवर्ग अर्थात् चतुर्विध संघ में अनेक भव्यों को दिशा दी कई मन्दिरों की प्रतिष्टा और जैन विद्यालयों की स्थापना करवा के सद्ज्ञान का प्रचार किया उपकेशपुर, माढव्यपुर, रत्नपुर, मेदनीपुर, जंगीपुर, पालीकापुरी साकम्बरी इंसावली, खेडीपुर, कोरंटपुर भीनमाल, सत्यपुर, जाबलीपुर, चन्द्रावती, शिवपुरी, पद्मावती बगेरह स्थलों की स्पर्शना करते हुए अर्बुदाचलादि तीर्थ की यात्रा करते हुए श्री संघ के साथ श्री सिद्धगिरी की यात्रा कर अपनी अन्तिम अवस्था गिरीराज की शीतल छाया में निवृत्तिभावसे व्यतित की अन्त में सतावीस दिन के अनसन पूर्वक समाधिसे कालकर स्वर्ग सिधारे । इतिश्री