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जैन जाति महोदय प्रत्य पांचवा.
दिन का अनसन कर लुखाद्रि गिरी पर समाधि पूर्वक काल कर स्वर्गवास किया । आचार्यश्री के देहान्त से श्री संघ में बड़ा भारी शोक छा गया, आपभी का अनि संस्कार हुआ था उस जगह
पक्षी की स्मृति के लिए एक बडा भारी विशाल स्तुभ कराया जिस की सेवा भक्ती से जनता अपना कल्याण कर सके । इति श्री पार्श्वनाथ आठवें पाट पर आचार्य श्री ककसूरीश्वरजी महान् प्रभाविक आचार्य हुए।
( ९ ) नौवें पाट आचार्य श्री देवगुप्तसूरिजी महाराज बडे ही प्रभावशाली हुए । आपश्री के लिए विशेष परिचय कराने की आवश्यकता नहीं है कारण पाठक स्वयं पढ चूके है कि भद्रावती नगरी के महाराजा शिवदत्त के लघु पुत्र जिस की एक दिन देवी के सामने बली दी जा रही थी, उस को वाचार्यश्री कक्कसूरिजी - ने बचा लिया था, जिस देवगुप्तने जैन दिक्षा ले प्रतिज्ञा पूर्वक कच्छ देश से कुप्रथाओं को देशनिकाल दे अपनी मातृभूमि का उद्धार किया, श्री सिद्धगिरी की शीतल छाया में चतुर्विध श्री संघ की विशाल संख्या के अन्दर आचार्य कक्कसूरिजीने अपने करकमलों से आचार्य पद अर्पण किया था वह ही देवगुप्तसूरि आज कच्छ और सिन्ध देश में हजारों मुनियों के साथ परिभ्रमण कर जैन धर्म का झण्डा फरका रहे हैं।
आचार्य देवगुप्तसूरि महाप्रभाविक बड़े ही विद्वान स्वपरमत के शास्त्रों के परमज्ञाता और अनेक चमत्कारी विद्याओंसे भूषित