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आचार्यश्री यकसरि.
(६७) करी कि भगवान ! भाप माझा फरमावे उसी देश में हम विहार करने को तैयार है जैन धर्म का प्रचार के लिये कठनाइए और परिसह की हम को परवाह नहीं है पर हम हमारे प्राण देने को भी तय्यार है इत्यादि इसी माफिक श्री संघने भी भाप श्रीमानों की माझा को शिरोधार्य करने की भावना प्रदर्शित करी इस पर सूरिजी महाराज को बडा सन्तोष हुमा और यथायोग्य पाशा फरमा के श्री संघ को कृतार्थ किया. बाद जयध्वनी के साथ सभा विसर्जन हुई।
तदनन्तर कोरंटपुर श्री संघने सूरीश्वरजी महाराज को चतुर्मास की विनन्ती करी और लाभालाभ का कारण देख आचार्यश्रीने कोरंटपुर में चातुर्मास किया ।
. प्राचार्यश्री के कोरंटपुर में विराजने से शासन प्रभावना, धर्म का उद्योत, जनता में जागृति, आदि अनेक सद्कार्य हुए। इतना ही नहीं पर आसपास के गांवों में भी अच्छा लाभ हुआ। बाद चतुर्मास के श्रापश्रीने मरूस्थल के अनेक ग्राम नगरों में विहार कर धर्म प्रचार बढाया । क्रमशः आपश्रीमानों का पधारना उपकेशपुर की तरफ हुमा यह शुभ समाचार मिलते ही उस प्रान्त में मानों एक नई चैतन्यता प्रगट हो गई। उपकेशपुर के श्री संघने सूरिजी का बहुत उत्साह से स्वागत किया श्री संघ के आग्रह से ५०० मुनियों के साथ वह चतुर्मास उपकेशपुर में ही विराज कर जनता परोपकार और जैन धर्म का प्रचार किया बाद आप की वय वृद्ध · होने से आप कई अर्सेतक वहां ही विराजमान रहे । आपने दिव्य शानद्वारा अपना भन्तिम समय जान मालोचना पूर्वक अठारे