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(६६) जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा. बनाए आचार्य श्री यक्षदेवसूरिने सिन्ध जैसे देश को जैनमय बना दिया इतना ही नहीं पर मेरे जैसे पामर प्राणियों का उद्धार किया मेरे विहार के दरम्यान कच्छ जैसा पतित देश भी आज जैनधर्म का भली भान्ति आराधन कर स्वर्ग मोक्ष के अधिकारी बन रहे हैं अभीतक ऐसे प्रान्तो भी बहुत है कि जहां पूर्व जमाने में जैन धर्म का साम्राज्य वरत रहा था आज वहां जैन धर्म के नाम को भी नहीं जानते हैं उस प्रदेश में जैन मुनियों के विहार की बहुत जरूरत है ! आशा है कि विद्वान मुनि कम्मर कस के तैयार हो जाएंगे। साथ में आपश्रीने फरमाया कि जैसे मुनिवर्ग का कर्तव्य है कि देशविदेश में विहार कर जैनधर्म का प्रचार करें, वैसे श्राद्ध वर्गका भी कर्तव्य है कि इस कार्य में पूर्णतया सहायक बने। नूतन श्रावकों के प्रति वात्सल्य भाव रक्खे, उन के साथ सब तरह का व्यवहार रखें, अपने २ ग्राम नगर में जैन विद्यालय और जैन मन्दिरों का निर्माण करवा के शासन की सेवा का लाभ हां. सिल करें इत्यादि सरीश्वरजी महाराज की देशना से श्रोताजन को यह सहज ही में खयाल हो आया कि भाचार्यश्री के हृदय में ही नहीं पर नस २ और रोम २ में जैन धर्म का प्रचार करने की विजली चमक उठी हैं।
आचार्य श्री के प्रभावशाली उपदेश की असर जनता पर इस कदर की हुई कि उन की नस २ में खून उबल उठा और जैन धर्म का प्रचार करना एक खास उन का कर्तव्य बन गया था. तदनुसार बहुत से मुनि पुङ्गवोंने हाथ जोड़ सूरिजी से अर्ज