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________________ (६५) जेन जाति महोदय प्रकरण पांचवा. . रियों और सोना चान्दी के देरासर रनों की प्रतिमाएं तथा वाजित्रों से गगन गूंज उठा था करीबन पांच हजार साधु साध्वी यात्रा निमित्त संघ में एकत्र हुए थे। शुभ मुहूर्त से महाराजा शिवदत्त के संघपतित्व में संघ रवाना हुआ क्रमशः तीर्थयात्रा करता हुआ सिद्धगिरि के दूर से दर्शन करते ही हीरा पन्ना और मुक्ताफल से तीर्थ पूजा की और सूरिजी महाराज के साथ भगवान् आदीश्वर की यात्रा कर सब लोगोंने अपने जीवन को पवित्र किया इस सुअवसर पर आचार्यश्रीने देवगुप्त मुनि को योग्य समझ श्री संघ के समक्ष सिद्धाचल की शीतल छाया में वासक्षेप के विधि विधान से प्राचार्य पद से विभूषित कर अपना भार प्राचार्य देवगुप्त सूरि को सुप्रत कर दीया। आचार्यश्री की समय सूचकता को देख श्रीसंघ में बडा ही हर्ष और प्रानन्द मङ्गल छा गया। सिद्धगिरी की यात्रा के पश्चात् आचार्य देवगुप्त सूरि की अध्यक्षता में सिंध और कच्छ का संघ तो वापिस लोट गया और आचार्य कक्कसूरि सौराष्ट्र लाट वगेरह में विहार कर मरूभूमि की और पधार गए । अर्बुदाचल की यात्रा कर चन्द्रावती शिवपुरी पद्मावती श्रीमालादि क्षेत्र को पावन करते हुए श्राप कोरण्टपुर पधारे वहां हजारों साधु साध्वियो श्राप की पहिले से ही प्रतीक्षा कर रहे थे राजा प्रजाने सूरिजी के नगर प्रवेश का बडा भारी महोत्सव किया कितनेक दिन वहां विराज के चिरकाल से देशना पिपासु भव्य जीवों को धर्मोपदेश से संतुष्ट किए।
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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