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कच्छ प्रदेशमे जैन धर्म. . (६३) दिनों में जैन धर्म एक नवपल्लव वृक्ष की भान्ति फलने फूलने लग गया। चतुर्मास के पश्चात् भाचार्य श्री कच्छ भूमि में विहार कर चारों और जैन धर्म का प्रचार कर रहे थे।
मुनि देवगुप्तने पहिले से ही प्रतिज्ञा की थी कि में दिक्षा ले कर सब से पहिले मेरी मातृभूमि का उद्धार करूंगा । इसी माफिक आपने धर्मध्वज हाथ में लेकर चारों ओर पाखण्डियों की पोप लीला यज्ञ होमादि में असंख्य प्राणियों की होती हुई घोर हिंसा और दुराचारियों की व्यभिचार वृति समूल नष्ट कर जहां तहां अहिंसा भगवती का ही प्रचार किया । जैन धर्म का खूब झण्डा फरकाया । आचार्य श्री कक्कसूरिजीने जैसे महान् परिश्रम उठाया था वैसे ही उन को महान् लाभ भी प्राप्त हुआ; कारण कच्छ भूमि में जैन धर्म का प्रचार किया सैकडो मुनियों को दिक्षा दी सैकड़ों जैन मन्दिरों की प्रतिष्टा और हजारों जैन विद्यालयों की स्थापन करवाई, लाखों लोगों को जैन धर्मोपासक बनाए इत्यादि । आपने अपने पूर्ण परिश्रम द्वारा अधोगती में जाती हुई जनता का उद्धार किया ।
जिस समय मरूस्थल का श्रीसंघ सूरिजी महाराज का विनन्ती के लिए आया था उस समय कच्छ में तिर्थाधिराज श्री सिद्धगिरी की यात्रा निमित्त संघ की बडी भारी तैयारियां हो रही थी, पट्टावलीकारोंने इस संघ के लिए इतना वर्णन किया है सिन्ध
और कच्छ के सिवाय मरूस्थलादि प्रान्तों के लाखों लोगों से मेदनी विभूषित हो रही थी हजारों हस्ती रथ अश्व बगेरह सवा