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जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा. की शिक्षा दिक्षा दे जैनी बना लिए इतना ही नहीं पर महाराज कुमार देवगुप्तने तो प्रतिझापूर्वक कह दिया कि मैं तो सूरिजी महाराज के समीप दिक्षा ले कच्छ देश का उद्धार करूंगा।
जैसे दिन प्रतिदिन प्राचार्यश्री का व्याख्यान होता रहा वैसे जैन धर्म का प्रचार बढता गया तथा सदाचार का जोर बढता गया वैसे दुराचार के पैर उखडते गए जैन मन्दिर और जैन विद्यालयों की खूब मजबूत नीवें डाली जा रही थी कि भविष्य के लिये भी जनता में जैन धर्मकी सुदृढ श्रद्धा और ज्ञानका प्रचार होता रहे । आचार्यश्रीकी आज्ञानुसार कई मुनि आसपास के ग्रामों . में उपदेश कर अहिंसा धर्म का प्रचार भी किया करते थे । कच्छ प्रदेशमें कई अर्सेसे जैन धर्मका नाम तक भी लूप्त सा हो गया था पर इस समय आचार्यश्री ककसूरिजीने फिर से जैन धर्म का बीज बो दिया इतना ही नहीं पर उसके सुन्दर अङ्कुर भी दिखाई देने लग गए थे । महाराज कुमार देवगुप्त और उनके सहचारी सैकडों नरनारी को सूरिजी महाराजने बड़े ही समारोहसे जैन दिक्षा दी और हजारों नहीं पर लाखों लोगों को जैन धर्मोपासक बनाए । राजा प्रजाका अत्याग्रह देख तथा भविष्य का लाभालाभ पर विचार कर साचार्यश्रीने वह चतुर्मास भद्रावती नगरी में ही किया । आपश्री के विराजने से वहां पर बडा भारी लाम हुमा सद्ज्ञान के प्रचार द्वारा जनता की श्रद्धा जैन धर्मपर विशेष सुदृढ हो गई । भासपास के ग्रामो में भी सूरिजी महाराज का बहुत अच्छा प्रभाव पडा अर्थात् थोडे ही