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________________ कच्छ प्रान्तमे जैन धर्म. ( ६१ ) सूरिजी का अनुकरण किया अर्थात् अन्न जल नहीं लिया इसका नाम ही सच्ची भक्ती है । देवगुप्तने सूरिजी के अन्य साधुओं की खबर करने को इधर उधर आदमी भेजे तो रात्री में ही खबर मिल गई थी कि नगरी से थोड़े ही फासले पर एक पर्वत के पास सूर्यास्त हो जाने पर सूरिजी महाराजकी राह देखते हुवे सब साधु वहां ही ठहरे हैं. देवगुप्तने यह समाचार सूरिजी महाराज के कानों तक पहूंचा भी दिया, मुनि वर्ग तो अपने ध्यान में मग्न हो रहे थे । इधर भद्रावती नगरी में उन पाखण्डियों की पापवृति के लिए जगह २ पर धिक्कार और आचा श्री के परोपकार परायणता के लिए धन्यवाद दिए जा रहे हैं । सूर्योदय होने के पश्चात् इधर तो आचार्यश्रीने अपनी नित्य क्रियासे निवृति पाई. उधर राजा प्रजा बडे ही समारोड़ के साथ सूरिजी महाराज के दर्शनार्थी और देशना रूपी अमृतपान करने की अभिलाषा से असंख्य लोग उपस्थित हो गए। सूरिजी महाराजने भी धर्मलाभ के पश्चात् देशना देनी प्रारंभ की आचार्य कक्कसूरिजी महाराज बडे ही समग्रज्ञ थे अपने अपने प्रभावशाली व्याख्यानद्वारा उन पाखण्डियों की घोर हिंसा और व्यभिचारसे घृणित जनता पर हिंसा भगवती का इतना तो प्रभाव डाला कि राजा और प्रजा एकदम सूरिजी महाराज के झण्डेलीझण्डा के नीचे जैन धर्म का सरा अर्थात् जैन धर्म स्वीकार करने को तैयार हो गए चार्यश्रीने भी अपने वासक्षेप से उनको पवित्र बना के जैन धर्म
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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