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________________ आचार्यश्री का संवाद. भला हो कि आपने मुझे जीवन संकटसे बचाया अब मेरा जीवन तो आपश्री के चरणों में है यह कहते ही उस तरुण के नेत्रोंसे मांसुओंकी धारा छूट गई। आचार्य-महानुभाव ! घबरानो मत अगर भापको इस बात का अनुभव हो गया हो और अपने भाइयों को इस संकट से बचाना हो तो वीरता पूर्वक इस आसुरी नीच कुप्रथा को जड़ामूल से उखाड़ दो कि तुमारी तरह और किसी को दुःखी न होना पड़े। . युवक-महाराज ! आपका कहना सत्य है, और मैं प्रतिज्ञा पूर्वक आप के सामने कहता हु कि आप हमारे नगर में पधारे में थोडा ही दिनों में इन पाखण्डियों के पैर उखड दूंगा । आचार्य हे भद्र ! हम इतने ही नहीं पर हमारे साथ . बहुत से साधु हैं किन्तु हम लोग रास्ता भूल करके इधर पाए हैं और हमारे साधु न जाने किस तरफ गए होंगे ? कारण हम सब लोग इस भूमि की राहसे विल्कुल अज्ञात हैं गर यहां से कोई माम नजदीक हो तो उसका रास्ता हमको बतला दिजिए। युवक-पूज्यवर ! यहां से बारह कोस पर हमारी मद्रवती नगरी है अगर आप वहां पर पधार जावें तो हम लोग आपके लिए सब इंतजाम कर देंगे। । प्राचार्यजीने इस बातको स्वीकार करली तब वह नवयुवक भापश्री के साथ में हो गया और क्रमशः शायंकाल होते ही भ.
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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