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जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा.
चाहते हैं तो इस पापमय हिंसा का त्याग करो । जंगली टीग २ नैत्रोंसे सूरिजी के सामने देखते हुए चुपचाप रहे कारण चिरका -
से पडी हुई कुरूढी का एकदम त्याग करना उन अज्ञानी लोगों के लिये यह एक बड़ी मुश्किल की बात थी तथापि सूरिजी महाराज का उनपर इतना प्रभाव पडा कि वे कुछ बोल नहीं सके ।
आचार्य:- उस नवयुवक के सामने देखते हुए बोले कि महानुभव ! तुमारे चहरे पर से तो ज्ञात होता है कि तुम किसी उच्च खानदान के वीर है फिर समझ में नहीं आता है कि तुम इस निरापराधी मुक प्राणियों की त्रास को नजरों से कैसे देख रहे हो ? उस तरूणने सूरिजी महाराज के यह वचन सुनते ही as after से उठकर उन भैंसे बकरों को एकदम छोड दियें और सूरिजी महाराज के चरणों में सिर झुका कर बोला कि भगवान ! आज हम को नया जन्म देनेवाले आप हमारे धर्मपिता | आप के इस परमोपकार को मैं कभी नहीं भूल सकूंगा ।
आचार्य:- महानुभाव ! इस में उपकार की क्या बात है यह तो हमारा परम् कर्तव्य है और इस के लिए ही हम हमारा जीवन अर्पण कर चूके हैं पर मुझे आश्चर्य इस बात का है इन पाखण्डियों के चक्रमें तुम कैसे फंस गए ?
नवयुवक – महाराज ये लोग स्वर्ग भेजने की शर्त पर हको यहां पर लाए थे अगर आप श्रीमानों का इस समय पधारना न होता तो न जाने ये निर्दयी लोग मेरी क्या गती कर डालते । आपका