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प्राचार्यश्री का संवाद.
. जंगली:-कह दिया कि तुम अपना रास्ता पकडो।
आचार्यः- लो हम यहां पास में ही खडे हैं देखें, तुम क्या करते हो?
जंगलीने युवकपर कुठार चलाना प्रारंभ किया पर सूरिजी महाराज के तप तेजसे न जाने उस का हाथ क्यों रुक गया कि अनेक प्रयत्न करने पर भी वह अपने हाथ को नीचा तक भी नहीं कर सका, इस अतिशय प्रभाव को देख सब लोग दिरमुग्ध बन गए और आचार्यश्री के सामने देखने लगे कि यह क्या बलाय है । आचार्यश्रीने फरमाया कि भव्यों ! देवी देवता हमेशां उत्तम पदार्थों के भोक्ता हैं न कि ऐसे घृणित पदार्थों के । यह तो किसी मांस भक्षी पाखण्डियोंने देवी देवताओं के नामसे कुप्रथा प्रचलित की है और इस में शान्ति नहीं पर एक महान अशान्ति फैलती है इतना ही नहीं पर इस महान पाप का बदला नरक में देना पड़ता है वास्ते इस पाप कार्य का त्याग कर दो अगर तुम को देवी का ही क्षोभ हो तो लो देवी की जुम्मेवारी मैं अपने शिरपर लेता हूं आप इन भैंसे बकरों और युवक को घ्रि छोड़ दो कारण जैसे तुम को तुमारे प्राण प्यारे हैं वैसे इनको भी अपना जीवन वल्लभ है । जगत् में छोटे से छोटे और दुःखीसे दुःखी जीव सब जीवित रहना चाहते हैं मरना सब को प्रतिकुल है किसी जीव को तकलीफ देना भी नरक का कारण होता है तो ऐसी महान् घोर रूद्र हिंसा का तो पूछना ही क्या ? मैं भाप को ठीक हितकारी शिक्षा देता हूं कि आप अपना भला अर्थात् कल्यान