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________________ (५२) जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा. हुआ है। आपने सिन्ध प्रान्तमें विहार कर जैन धर्मका बड़ा भारी झण्डा फरकाया था जब आप अपनी अन्तिमावस्था जानी तब चतुर्विध श्री संघकी समक्ष मुनि कक्वको आचार्य पद पर नियुक्त कर शासनका सब भार उनको सुप्रत कर आप कई मुनियों को साथ ले विहार करते हुए पवित्र सिद्धगिरीकी शीतल छायामें शेषायु निवृतिमें विताने लगें । अन्तमें पनरा दिन के अनसन और समाधि पूर्वक चैत्र कृष्ण अष्टमी को नाशमान शरीर का त्यांग कर स्वर्गवास किया उस समय आपके उपासक साधु साध्वी श्रावक श्राविकाओंकी उपस्थिती बडी विशाल संख्या थी उन्होने स्मृति के लिए सिद्धगिरीपर एक बड़ा भारी स्थंभभी कराया था । इति श्री पार्श्वनाथ प्रभुके सातवें पाटपर श्राचार्य श्री यदेवसूरि महा प्रभाविक हुए । (८) तत्पट्टे आचार्य श्री कक्कसूरिजी महाराज हुए पीका विशेष परिचय करवाने की आवश्यक्ता नहीं है कारण पाठक स्वयं जान सक्ते हैं कि आप एक राजकुमार तरुण सूर्य की भान्ति चढती जुवानी में राज रमणिका त्याग कर आचार्य यक्षदेवसूरि के पास अपने पिता और १५० नर नारियोके साथ दिक्षा लीथी आचार्यश्री की सेवाभक्ति कर अनेक विद्याओं और स्वपरमतका ज्ञान प्राप्त किया था। आप श्रीमान अपनी मातृ भूमि में चारों और विहार कर जैन धर्मका प्रचार किया कारण अपने ज्ञान सूर्य की किरणोंसे मिध्यान्धकारका नाश करने में आप बड़े ही विद्वान थे पाखण्डियों के दुराचार को समूल नष्टक
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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