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________________ सिन्धं प्रान्तका श्री संघ. (५१) सूरिजी महाराजने स्वीकार कर ली तत्पश्चात् यह उद्घोषणा प्रायः सिन्ध प्रान्त में हो गई और सूरीश्वरजीकी अध्यक्षता में करीबन १००० साधु साध्वी और करीबन एक लक्ष श्राद्धवर्ग उपस्थित हुए शिवनगर के महाराज शिवराजको संघपति पद अर्पण कर शुभ मुहुर्तके अन्दर संघ छरी पालता हुआ यात्रा करने को रवाना हो गया जिसके अन्दर सोना चान्दीके देरासर रत्नों की प्रतिमाए और हस्ती घोड़े रथ पैदल वाजा गाजा नकार निशान वगेरह बड़े आडम्बर था जिस भक्तिका प्रभाव अन्य लोगों पर भी काफी पड रहा था, ग्राम नगर और तीर्थोंकी यात्रा करता हुआ क्रमशः संघ श्रीशत्रुजय पहुंचा और संघपति आदि लोगोंने मणि माणक मुक्ताफल तथा श्रीफल और स्वर्ण से तीर्थको वधाया और चतुर्विध संघ सूरिजी महाराजके साथ यात्रा कर अपने जीवनको सफल किया। वाद गिरनार वगेरह तीर्थोकी यात्रा कर आनन्द मंगलसे श्री संघ वापस सिन्ध प्रदेश में पहुंच गया । इस यात्रासे जैन धर्मपर लोगों की श्रद्धा रूची और भी बढ गई । इत्यादि आचार्य श्री यक्षदेव सूरिने अपने जीवन में जैन शासनकी बड़ी भारी सेवा करी आचार्य श्री स्वयम्प्रभसूरि और रत्नप्रभसूरि के बनाए हुए महाजन संघका रक्षण पोषण और वृद्धि करी। सिन्ध जैसी विकट भूमिमें विहार कर सबसे पहिले लुप्त हुआ जैन धर्मका फिरसे आपश्रीने ही प्रचार किया, हजारो जैन मन्दिर और विद्यालयोंकी स्थापना करवाई और हजारों साधु साध्वीयों को दिक्षा दे श्रमण संघमें वृद्धिकरी इत्यादि आपश्रीका जैन शासनपर वडा भारी उपकार
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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