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________________ (५०) जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा. नामी राजा था उसके दिक्षा लेनेसे सम्पूर्ण सिन्ध प्रदेशमें जैन धर्मकी बड़ी भारी छाप पड गई थी। शिवनगर के चतुर्मास से प्राचार्य श्री को बड़ा भारी लाभ हुआ आसपासमें अनेक मन्दिरोंकी प्रतिष्ठा और अनेक विद्यालयोंकी स्थापना करवा के जैन धर्मका प्रचार किया । आचार्य यक्षदेवसूरिने अपने शिष्य समुदाय के साथ सिन्ध भूमि में खूब ही परिभ्रमण किया फल स्वरूपमें थोड़े ही दिनोंमें आपने १००० साधु साध्वियोंको दिक्षा दी सेकडों जैन मन्दिर और विद्यालयों की स्थापना करवाई चारों और जैन धर्मका झण्डा फरका दिया । मुनिगण में काव नामका मुनि जो महाराज रूद्राट का लघु पुत्र था उसने थोडे ही दिनों में ज्ञानाभ्यासकर स्व-परमत के अनेक शास्त्रोंका ज्ञान से पारगामी हो गया जैसे आप ज्ञान में उच्चकोटीका ज्ञानी थे वैसे जैन धर्मका प्रचार करने में भी बड़े ही वीर थे जिसमें भी अपनी मातृ भूमिका तो आपको इतना गौरव था कि मैं सबसे पहिले इस सिन्ध भूमिका ही उद्धार करूंगा अर्थात् सिन्ध प्रान्तको जैन धर्ममय बना दूंगा और आपने किया भी ऐसा ही। ___ एक समय का जिक्र है कि आचार्यश्रीने परम पवित्र तीर्थाधिराज श्री सिद्धाचळजीके महात्म्यका व्याख्यान किया उसको श्रवण कर चतुर्विध श्रीसंघने अर्ज करी कि हे प्रभो! आप हमको उस पवित्र तीर्थकी यात्रा करवाके गर्भावाससे बहार निकालें इस वातको
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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