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आचार्य श्री यदेव सूरि.
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तैयार करवाया और कई विद्यालय खोल दी कि जिनके अन्दर ज्ञान का प्रचार हो रहा था ।
महाराज रूद्राट और श्री संघ के अत्याग्रह से आचार्यश्री यक्ष देवसूरि का चतुर्मास शिवनगर में हुआ जिस से श्री संघ में उत्साह की और भी वृद्धि हुई ।
महाराज रूद्राट के बनाए हुए महावीर प्रभु के मन्दिर की प्रतिष्ठा हुई विद्यालय के जरिए जैन तत्वज्ञानका भी खूब प्रचार हुआ आचार्य श्री के प्रभावशाली उपदेश का यों तो सब लोगों पर अच्छा असर हुआ पर विशेष प्रभाव महाराजा रूद्राट और राजकुमार कक़्व पर हुआ कि जिन्होंने अपने राजकाज और संसार सबन्धी सर्व कार्योंका परित्याग कर सूरिजी महाराज के चरणोंकी सेवा करने को उपस्थित हो गए अर्थात् दिक्षा . लेनेको तैयार होगए उनका अनुकरण करनेको कई नागरीक लोग भी मुक्ति रमणीकी वरमाला से ललचागए चतुर्मास के बाद शुभ मुहूर्तके अन्दर महाराज रूद्राटने अपने बड़े पुत्र शिवकुमारका राज्याभिषेक कर आप अपने लघु पुत्र कव और करीवन १५० नर नारियों के साथ आचार्य श्री यक्षदेव सूरिके पास मार्गशिर्ष शुक्ल पंचमी को बड़े ही समारोहके साथ जैन दिक्षा धारणकर ली । सिन्ध प्रदेशमें यह पहला पहली महोत्सव होनेसे जैन धर्मका बड़ा भारी उद्योत हुआ जनतापर जैन धर्मका बड़ा भारी प्रभाव पढा कारण उस जमाने में सिंध प्रदेशका महाराजा रूद्राट एक
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